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२, २, ३३. ]
एगजीवेण कालानुगमे देवकालपरूवणं
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लोहिको रिट्ठो दावतो पहंकरो पिट्ठओ गजो मित्तो पभा चेदि सोधम्मीसाणे एक्कतीस पत्थडा होति' । एत्थ उदुम्हि पढमपत्थडे जहण्णमाउअं दिवद्धपलिदोवमं उक्कस्समद्धसागरोत्रमं । एतो तीसण्हं इंदयाणं वड्डी बुच्चदे । तत्थ अद्धसागरोवमं मुहं होदि, भूमी अड्डाइज्जसागरोमाणि । भूमीदो मुहमवणिय उच्छएण भागे हिदे सागरोवमस्स पण सभागो बड्डी होदि | | एदमिच्छिद पत्थड संखाए गुणिय मुहे पक्खित्ते विमलादी तीस पत्थामाउआणि होंति । तेसिमेसा संदिड्डी
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२९/३१ १ १ ७ ३७ १३ ४ १ | ३० ३० १०६ ३० १० ३ ० ३
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१००६१ २११३६७ २३ ७१७३ १० 20,30 १० ६ १०३०२० २
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३ ३ ४ ५
सोमीसा एक्कतीसं पत्थडाणि त्ति कधं णव्वदे ?
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इगिनीस सत्त चत्तारि दोणि एक्केक्क छक्क एक्काए । उदुआदिवमाणिंदा तिरधियसट्टी मुणेयव्वा ॥ २॥
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और प्रभा, इन नामोंके इकतीस प्रस्तर सौधर्म ईशान कल्पमें हैं । इनमें से ऋतु नामक प्रथम प्रस्तर में जघन्य आयु डेढ़ पल्योपम व उत्कृष्ट आयु अर्ध सागरोपमप्रमाण है । अव यहां द्वितीयादि तीस इन्द्रकों में वृद्धिका प्रमाण कहते हैं- यहां अर्ध सागरोपम तो मुख है और अढ़ाई सागरोपम भूमि है। अतएव भूमिमेंसे मुखको घटा देने व उच्छ्रय अर्थात् उत्सेध ( ३० ) से भाग देनेपर ( २३-३ ) ÷ ३०=३ = एक सागरोपमका पन्द्रहवां भाग वृद्धिका प्रमाण आता है । इस को अभीष्ट प्रस्तरकी संख्या से गुणित करके मुखमें मिला देने से विमलादिक तीस प्रस्तरोंकी आयुका प्रमाण होता है । उनकी दृष्टि इस प्रकार है । (मूलमें देखिये )
शंका- सौधर्म-ईशान कल्पमें इकतीस प्रस्तर हैं, यह कैसे जाना ?
समाधान - सौधर्म-ईशान कल्पों में इकतीस विमान प्रस्तर हैं, सानत्कुमार-माहेंद्र कल्पोंमें सात, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में चार, लांतव कपिष्टमें दो, शुक्र महाशुक्र में एक, शतारसहस्रारमें एक, आनत प्राणत और आरण- अच्युत कल्पोंमें छह, तथा नौ ग्रैवेयकों में एक एक, अनुदिशों में एक और अनुत्तर विमानोंमें एक, इस प्रकार ऋतु आदिक इन्द्रक विमान तिरेसठ जानना चाहिये ॥ २ ॥
१ त. रा. वा. ४, १९, ८.
२ इगितीस सत चचारि दोणि एक्केक्क छक्क चदुकप्पे । तित्तिय एक्केक्किदयणामा उद्धआदि तेवट्ठी ॥ त्रि. सा. ४६२.
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