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________________ १३०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, २, ३३. सागरोवमाणि, बम्ह-बम्होत्तरेसु साद्धसत्तसागरोबमाणि, लांतव-काविढेसु साद्धदससागरोवमाणि । सुक्क-महासुक्केसु साद्धचोदससागरोवमाणि सदर-सहस्सारकप्पेसु साद्धसोलससागरोवमाणि जहण्णाउवं । उक्कस्सेण वे सत्त दस चोदस सोलस अट्ठारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३३॥ सोहम्मीसाणेसु अड्डाइजसागरोवमाणि देसूणाणि, सणक्कुमार-माहिदेसु साद्धसत्तसागरोवमाणि देसूणाणि, बम्ह-बम्होत्तरेसु साद्धदससागरोवमाणि देसूणाणि, लांतव-कापिढेसु साद्धचोदससागरोवमाणि देसूणाणि, सुक्क-महासुक्केसु साद्धसालससागरोवमाणि देसूणाणि, सदर-सहस्सारेसु साद्धअट्ठारससागरोवमाणि देसूणाणि । एत्थ देसूणपमाणं जाणिदूण वत्तव्यं । एदाणि दो वि सुत्ताणि देसामासयाणि । तेणेदेहि सूइदत्थस्स परूवणं कस्सामो। तं जहा- उदू विमलो चंदो वग्गू वीरो अरुणो णंदणो णलिणो कांचों रुहिरो चंचो मरुदिद्धिसो वेलुरिओ रुजगो रुचिरो अंको फलिहो तवणीओ मेहो अभं हरिदो पउमं --......................................... माहेन्द्र स्वर्गों में अढ़ाई सागरोपम, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्गों में साढ़े सात सागरोपम, लांतव और कापिष्ठ स्वर्गों में साढ़े दश सागरोपम, शुक और महाशुक्रमें साढ़े चौदह सागरोपम, तथा शतार और सहस्रार स्वर्गों में साढ़े सोलह सागरोपम जघन्य आयु है। आधिकसे अधिक सातिरेक दो, सात, दश, चौदह, सोलह व अठारह सागरोपम काल तक जीव सौधर्म-ईशान आदि कल्पोंमें रहते हैं ॥ ३३ ॥ सौधर्म-ईशान कल्पोंमें कुछ कम अढ़ाई सागरोपम, सनत्कुमार-माहेन्द्र में कुछ कम साढ़े सात सागरोपम, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तरमें कुछ कम साढ़े दश सागरोपम, लांतव-कापिष्टमें कछ कम साढे चौदह सागरोपम, शुक्र-महाशुक्रमें कछ कम साढे सोलह सागरोपम, तथा शतार-सहस्रार कल्पोंमें कुछ कम साढ़े अठारह सागरोपम उत्कृष्ट आयुप्रमाण होता है। यहां देशोन अर्थात् कुछ कमका प्रमाण जानकर कहना चाहिये। ___ उपर्युक्त दोनों सूत्र देशामर्शक हैं, इसलिये इनके द्वारा सूचित अर्थका प्ररूपण करते हैं। वह इस प्रकार है __ ऋतु, विमल, चन्द्र, वल्गु, वीर, अरुण, नन्दन, नलिन, कांचन, रुधिर, चंच, मरुत् (मारुतज्ञ), ऋद्धीश (द्वीश), वैडूर्य, रुचक, रुचिर, अङ्क, स्फटिक, तपनीय, मेघ (मेध), अभ्र, हरित, पद्म, लोहिताक, वरिष्ठ, नन्दावर्त, प्रभंकर, पिष्टाक, गज, मित्र ............................................... १ प्रतिषु बोहम्मीसाणे ' इति पाठः । २-आप्रयोः । कीचणो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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