________________
२, २, ३२. ]
एगजीवेण कालागमे देवकालपरूवणं
[ १२९
भवणवासिए सागरोत्रममसागरोवमहियं । वाणवेंतर- जोदिसिएसु पलिदेवमं अपलिदोवमहियं उक्कस्सट्ठिदिपमाणं होदि । ण च बंधसुत्तेण सह विरोहो, उवरिमआउ मोट्टणाघाण घादिय उप्पण्णेसु एदेसिमा उवाणमुवलंभादो । एत्थ सव्वत्थ किंचूणपमाणं जाणिदूण वत्तव्यं । एदेसु तिसु वि देवलोएसु जहण्णाउअप्पहुडि जावुक्कस्साउवं त्ति समउत्तरखड्डीए आउवं वडदि, पत्थडाणमभावा । सेसं सुगमं ।
सोहम्मीसाण हुड जाव सदर - सहस्सारकप्पवासियदेवा केव चिरं कालादो होंति ? ॥ ३१ ॥
सुगममेदं ।
जहणेण पलिदोवमं वे सत्त दस चोइस सोलस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३२ ॥
सोधम्मसासु दिवड लिदोवमं जहण्णाउअं, सणक्कुमार- माहिंदेसु अड्डाइज्ज
भवनवासी देवोंमें उत्कृष्ट आयुस्थितिका प्रमाण अर्ध सागरोपम अधिक एक सागरोपम होता है, तथा वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें अर्ध पल्योपम अधिक एक पल्योपम होता है । इस प्रकार उत्कृष्ट आयुके प्रमाणके कथनका आयुबन्धसम्बन्धी सूत्र में कहे गये प्रमाणसे विरोध नहीं उत्पन्न होता, क्योंकि, ऊपरकी आयुको उद्वर्तनाघातसे घात करके उत्पन्न हुए भवनवासी आदि देवोंमें आयुओंका प्रमाण इसी प्रकार पाया जाता है । इन सब आयुओंमें जो किंचित् हीन प्रमाण होता है उसका कथन जानकर करना चाहिये । (देखो जीवट्ठाण, कालानुगम, सूत्र ९६ टीका, भाग ४ पृ. ३८२ )
इन तीनों देवलोकोंमें जघन्यायुसे लेकर उत्कृष्ट आयु पर्यन्त उत्तरोत्तर एक एक समय अधिक क्रमसे आयु बढ़ती है, क्योंकि यहां प्रस्तरोंका अभाव है । शेषं सुन्नार्थ सुगम है ।
जीव सौधर्म-ईशानसे लगाकर शतार - सहस्रार पर्यन्त कल्पवासी देव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ३१ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
कमसे कम सातिरेक एक पल्योपम, दो सागरोपम, सात सागरोपम, दश सागरोपम, चौदह सागरोपम व सोलह सागरोपम काल तक जीव सौधर्म - ईशानसे लेकर शतार- सहस्रार तक के कल्पवासी देव होते हैं ॥ ३२ ॥
सौधर्म और ईशान स्वगमें डेढ़ पल्योपम जघन्य आयु है । सनत्कुमार और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org