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१२८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, २८. च मुदाणं पुणो तत्थेवाणंतरमुप्पत्तीए अभावादो । कुदो ? अच्चंताभावादो।
(भवणवासियवाणवेंतर-जोदिसियदेवा केवचिरं कालादो होति ? ॥ २८ ॥
सुगममेदं ।
जहण्णेण दसवाससहस्साणि, (दसवाससहस्साणि,) पलिदोवमस्स अट्ठमभागो ॥ २९॥
भवणवासिय-वाण-तराणं दसवाससहस्साणि जहण्णाउद्विदी, जोदिसियाणं पलिदोवमस्स अट्ठमो भागो । वियच्चासो किण्ण होदि ? ण, समेसु उद्देसाणुदेसीसु जहासंखं मोत्तूण अण्णस्सासंभवादो। सेसं सुगमं ।
उक्कस्सेण सागरोवमं सादिरेयं, पलिदोवमं सादिरेयं, पलिदोवमं सादिरेयं ॥३०॥
और भोगभूमिज मनुष्य, इनके मरनेपर पुनः उसी पर्यायमें अनन्तर उत्पत्ति नहीं पायी जाती, चूंकि इसका अत्यन्त अभाव है।
जीव भवनवासी, वानव्यन्तर व ज्योतिषी देव कितने काल तक रहते हैं १॥२८॥ यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम दश हजार वर्ष तक, दश हजार वर्ष तक तथा पल्योपमके अष्टम भाग काल तक जीव क्रमशः भवनवासी, वानव्यन्तर व ज्योतिषी देव रहते हैं ॥२९॥
भवनवासी और वानव्यन्तर देवोंकी जघन्य आयुस्थिति दश हजार वर्ष है, तथा ज्योतिषी देवोंमें जघन्य आयुस्थिति पल्योपमके अष्टम भागप्रमाण है।
शंका-जघन्य आयुस्थिति इसके विपर्यासरूपसे अर्थात् भवनवासी और वानव्यन्तर देवोंमें पल्योपमके अष्टम भाग और ज्योतिषी देवोंमें दश हजार वर्षकी क्यों नहीं हो सकती?
समाधान नहीं हो सकती, क्योंकि उद्दिष्ट और अनुद्दिष्ट पदोंके समान होनेपर यथासंख्य न्यायको छोड़कर अन्य प्रकार विधान होना असंभव है।
शेष सूत्रार्थ सुगम है।
अधिकसे अधिक क्रमशः सातिरेक एक सागरोपम, सातिरेक एक पल्योपम व सातिरके एक पल्योपम काल तक जीव भवनवासी, वानव्यन्तर व ज्योतिषी देव रहते हैं ॥३०॥
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सकता
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