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२, २, २७.! एगजीवेण कालाणुगमे देवकालपरूवणं
[१२७ कुदो ? अइबहुवारमेदेसु अइदीहाउओ होद्ण उप्पण्णस्स वि दोघडियामेत्तभवद्विदीए अभावादो।
देवगदीए देवा केवचिरं कालादो होति ? ॥ २५ ॥ सुगममेदं' जहण्णेण दसवाससहस्साणि ॥ २६ ॥
तिरिक्ख मणुस्सेहिंतो जहण्णाउट्ठिदिदेवेसुप्पन्जिय णिग्गयस्स एत्तियमेत्तकालु वलंभादो।
उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि ॥ २७॥
सबसिद्धिदेवेसु आउअं बंधिय कमेण तत्थुप्पज्जिय तेत्तीससागरोवमाणि तस्थच्छिद्ग णिग्गयस्स तदुवलंभादो । सत्तभवग्गहणाणि दीहाउढिदिएसु देवेसु उप्पाइदे कालो बहुओ लब्भदि ति वुत्ते ण, देव-णेरइयाणं भोगभूमितिरिक्ख-मणुस्साणं
__ क्योंकि, अनेक बहुवार अपर्याप्त मनुष्यों में अतिदीर्घायु होकर भी उत्पन्न हुए जीवके दो घड़ी मात्र भवस्थितिका होना असंभव है।
देवगतिमें जीव देव कितने काल तक रहते हैं ? ॥२५॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम दश हजार वर्ष तक जीव देव रहते हैं ॥२६॥
क्योंकि, तिर्यंचों या मनुष्योंमेंसे निकलकर व जघन्य आयुवाले देवोंमें उत्पन्न होकर वहांसे निकले हुए जीवके सूत्रोक्त मात्र काल ही देवपर्यायमें पाया जाता है ।
अधिकसे अधिक तेतीस सागरोपम काल तक जीव देव रहते हैं ॥२७॥
क्योंकि, सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंमें आयुको बांधकर क्रमशः वहां उत्पन्न होकर व तेतीस सागरोपम काल मात्र वहां रहकर निकले हुए जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है।
शंका-दीर्घायुस्थितिवाले देवोंमें सात आठ भवोंका ग्रहण करनेसे और भी अधिक काल देवगतिमें पाया जा सकता है ?
समाधान नहीं पाया जा सकता, क्योंकि देव, नारकी, भोगभूमिज तिर्यंच
१ प्रतिषु सुगममेयं ' इति पाठः ।
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