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________________ १२६] खंड गमे खुद्दा [ २, २, २२. कुदो ! अणप्पिदेहिंतो आगंतूण अप्पिदमणुसेसुववज्जिय सत्तेतालीस-तेवीससतपुचकोडीओ जहाकमेण परिभमिय दाणेण दाणाणुमोदेण वा चिपलिदोवमा उट्ठदिमणुसे सुप्पण्णस्स तदुवलंभादो । मणुस्सअपज्जता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ २२ ॥ aar बहुवणणिसो जुज्जदे ? ण, पुव्युत्तकमेण एक्कहि बहुत्तणिद्दे सस्स अविरोधादो | अधवा ण एत्थ एक्केण चैव जीवेण अहियारो, किंतु पादेक्कं सव्जीवेहि अहियारोति काऊ बहुवयणणिसो उववज्जदे | जहणेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ २३ ॥ कुदो ? अणप्पिदेहिंतो आगंतून तत्थुष्पज्जिय घादखुदा भवरगहणमच्छिय निफिडिदूग अणप्पिएसु उप्पण्णस्स तदुवलंभादो । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २४ ॥ क्योंकि, किन्हीं भी अविवक्षित पर्यायसे आकर विवक्षित मनुष्यों में उत्पन्न होकर क्रमशः सैंतालीस, तेईस व सात पूर्वकोटि काल परिभ्रमण करके दान देकर अथवा दान का अनुमोदन करके तीन पल्योपम् आयुस्थितिवाले (भोगभूमिज ) मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है । जीव अपर्याप्तक मनुष्य कितने काल तक रहते हैं ? ॥ २२ ॥ शंका – सूत्र में बहुवचनात्मक निर्देश कैसे उपयुक्त ठहरता है ? समाधान - क्योंकि, जैसा पहले कह चुके हैं उसी क्रमसे चूंकि जीव एक भी है, अनेक भी है, अतएव अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे बहुवचनके निर्देश से कोई विरोध उत्पन्न नहीं होता । अथवा, यहां केवल एक ही जीवकी अपेक्षाका अधिकार नहीं है, किन्तु प्रत्येक रूपसे सभी जीवोंकी अपेक्षा अधिकार है, ऐसा समझकर बहुवचननिर्देश उपयुक्त सिद्ध हो जाता है । कमसे कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र काल तक जीव अपर्याप्त मनुष्य रहते हैं ।। २३ ॥ क्योंकि, किन्हीं भी अन्य पर्यायोंसे आकर अपर्याप्तक मनुष्यों में उत्पन्न होकर कदलीघात से भुज्यमान आयुके घात द्वारा क्षुद्रभवग्रहणमात्र काल तक रहकर व वहांसे निकलकर किसी भी अन्य पर्याय में उत्पन्न होनेवाले जीवके सूत्रोक्त कालकी प्राप्ति होती है । अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव अपर्याप्त मनुष्य रहते हैं ||२४| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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