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२, २, २१.] एगजीवेण कालाणुगमे मणुस्सकालपरूवर्ण
(मणुसगदीए) मणुसा मणुसपज्जत्ता मणुसिणी केवचिरं कालादो होति ? ॥ १९॥
एगजीवस्स कालाणुगमे कीरमाणे 'मणुसो केवचिरं कालादो होदि' ति एगजीवविसयपुच्छाए होदव्यमिदि? ण, एक्कम्हि वि जीवे एयाणेयसंखोवलक्खिए असुद्धदव्यट्ठियविवक्खाए अणेयत्तस्स अविरोहादो । सव्वत्थ पुच्छापुबो चेव अत्थणिद्देसो किमहं कीरदे ? ण, वयणपवुत्तीए परदृत्तपदुप्पायणफलत्तादो।
जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणमंतोमुहुत्तं ॥ २० ॥
सामण्णमणुस्साणं जहण्णाउट्ठिदिपमाणं खुद्दाभवग्गहणं होदि, तत्थ अपज्जत्ताणं संभवादो। पजत्त-मणुसिणीसु जहण्णाउट्ठिदिपमाणमंतोमुहुत्तं, तत्थ तत्तो हेडिमआउट्ठिदिवियप्पाणमणुवलंभादो । सेसं सुगमं ।
उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुधत्तेणभहियाणि ॥२१॥
(मनुष्यगतिमें ) जीव मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त व मनुष्यिनी कितने काल तक रहते हैं ? ॥१९॥
शंका-जब एक जीवकी अपेक्षा कालानुगम किया जा रहा है तब 'जीव मनुष्य कितने काल तक रहता है' इस प्रकार एक जीव विषयक ही प्रश्न होना चाहिये, (न कि बहुवचनात्मक जैसा कि सूत्र में पाया जाता है) ?
समाधान- नहीं, क्योंकि एक व अनेक संख्यासे उपलक्षित जीवमें अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा अनेकत्वके कथनसे कोई विरोध नहीं उत्पन्न होता।।
शंका-सर्वत्र प्रश्नपूर्वक ही अर्थका निर्देश क्यों किया जा रहा है ?
समाधान-'यह वचनप्रवृत्ति परोपकारार्थ है' ऐसी श्रद्धा उत्पन्न करने रूप फलकी अभिलाषासे ही यहां प्रश्नपूर्वक अर्थका निर्देश किया जा रहा है।
कमसे कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र या अन्तर्मुहूर्तमात्र काल तक जीव मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त व मनुष्यनी रहते हैं ॥२०॥
___सामान्य मनुष्योंकी जघन्य आयुस्थितिका प्रमाण क्षुद्रभवग्रहणमात्र होता है, क्योंकि,सामान्य मनुष्योंमें अपर्याप्त जीवोंका होना संभव है। किन्तु पर्याप्तक मनुष्य और मनुष्यिनियों में जघन्य आयुस्थितिका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, उनमें ( अपर्याप्तकोंके अभावसे) आयुस्थितिके विकल्प अन्तर्मुहूर्तसे कमके नहीं पाये जाते । शेष सूत्रार्थ सुगम है।
अधिकसे अधिक पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम काल तक जीव मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त व मनुष्यिनी रहते हैं ॥२१॥
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