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२, २, ९.] एगजीवेण कालाणुगमे णेरइयकालपरूवणं [११९
एत्थ जहासंखणाओ अल्लिएदव्यो । एदाणि दो वि सुत्ताणि देसामासियाणि, पादेकं पुढवीणं जहण्णुक्कस्सद्विदीपरूवणामुहेण सव्वपत्थडाणमाउढिदिसूचणादो । एदेहि दोहि वि सुत्तहि सूचिदत्थस्स परूषणं कस्सामो। तं जहा - तणओ' थणओ वणओ मणओ घादो संघादो जिब्भो जिब्भओ लोलो लोलुयो थणलोलुवो चेदि एदे विदियपुढवीए इंदया । एदेसिमाउहिदीए आणिज्जमाणाए पढमपुढविउक्कस्साउअं मुहं काऊण विदियाए पुढवीए उक्कस्साउअं तिण्णिसागरोवमपमाणं भूमि काऊण एक्कारस इंदए उस्सेहं काऊण पुबिल्लकरणगाहाए बिदियपुढवीएक्कारसपत्थडाणं पादेक्कमाउपमाणमाणेदव्वं । तेसिं पमाणमेदं |, २.
३ । तदियाए पुढर्वाए तत्तो तसिदो तवणो तावणो णिदाहो पञ्जलिदो उज्जलिदो सुपजलिदो संपज्ज
__यहां पर सूत्रके अर्थ करनेमें 'यथासंख्य' न्यायका आश्रय लेना चाहिये अर्थात् तीन, सात आदि सागरोपमोंको क्रमशः दूसरी, तीसरी आदि पृथिवियोंके आयुप्रमाण रूपसे योजित करना चाहिये। पूर्वोक्त दोनों सूत्र देशामर्शक हैं, क्योंकि, वे प्रत्येक पृथिवीकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिकी प्ररूपणा द्वारा अपने अपने समस्त पाथड़ोंकी आयुस्थितिकी सूचना करते हैं । अब हम यहां इन दोनों सूत्रोंके द्वारा सूचित अर्थका प्ररूपण करते हैं। वह इस प्रकार है -
तनक, स्तनक, वनक, मनक, घात, संघात, जिव्ह, जिव्हक, लोल, लोलुप और स्तनलोलुप ये क्रमशः द्वितीय पृथिवीके ग्यारह इन्द्रकों के नाम हैं । इनकी आयुस्थिति लानेके लिये प्रथम पृथिवीकी उत्कृष्ट स्थितिको मुख करके तथा दूसरी पृथिवीकी तीन सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट आयुको भूमि करके और ग्यारह इन्द्रकोंको उत्सेध करके पूर्वोक्त करणगाथानुसार द्वितीय पृथिवीके ग्यारह पाथड़ोंमेंसे प्रत्येकका आयुप्रमाण ले आना चाहिये।
उदाहरण-द्वि. पृ. संबंधी मुख = १ सा., भूमि = ३ सा., उत्सेध = ११ . अतएव प्रत्येक प्रस्तरके लिये वृद्धिका प्रमाण हुआ- (३-१) ११=३ । इसको इच्छा अर्थात् प्रस्तरकी क्रमसंख्यासे गुणा करनेपर व भूमिमें मिलानेपर ग्यारहों प्रस्तरोंका आयुप्रमाण इस प्रकार आता है। प्रस्तर । २ । २ । ३ । ४ । ५। ६ । ७ । ८९।१०। १ ।
तीसरी पृथिवीमें तप्त, त्रसित, तपन, तापन, निदाघ प्रज्वलित, उज्वलित,
१ प्रतिषु ' थदओ' इति पाठः ।
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