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________________ २, १, ७७. ] सामित्ताणुगमे सम्मत्तमागणा कुदो १ दंसणमोहणीयस्स उवसमेणेदस्सुप्पत्तिदंसणादो । सासणसम्माइट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ७६ ॥ एत्थ पुव्वं व णिक्खेवे काऊण णोआगमदो भावसासणसम्माइट्ठी घेत्तव्यो । सो कधं होदि केण पयारेण होदि त्ति पुच्छा।। पारिणामिएण भावेण ॥ ७७ ॥ एसो सासणपरिणामो खईओ ण होदि, दंसणमोहक्खएणाणुप्पत्तीदो । ण खओवसमिओ वि, देसघादिफद्दयाणमुदएण अणुप्पत्तीए । उवसमिओ वि ण होदि, दसणमोहुवसमेणाणुप्पत्तीदो। ओदइओ वि ण होदि, दंसणमोहस्सुदएणाणुप्पत्तीदो । पारिसेसादो पारिणामिएण भावेण सासणो होदि । अणंताणुबंधीणमुदएण सासणगुणस्सुवलंभादो ओदइओ भावो किण्ण उच्चदे ? ण, दसणमोहणीयस्स उदय-उवसम-खयखओवसमेहि विणा उप्पज्जदि ति सासणगुणस्स कारणं चरित्तमोहणीयं तस्स दंसण क्योंकि, दर्शनमोहनीय कर्मके उपशमसे उपशम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति देखी जाती है। जीव सासादनसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥७६ ॥ यहां पूर्वानुसार निक्षेपोंको करके नोआगम भावसासादनसम्यग्दृष्टिका ग्रहण करना चाहिये । वह सासादनसम्यग्दृष्टि कैसे होता है अर्थात् किस प्रकार होता है ऐसा सूत्र में प्रश्न किया गया है।। पारिणामिक भावसे जीव सासादनसम्यग्दृष्टि होता है ॥ ७७॥ यह सासादन परिणाम क्षायिक नहीं होता, क्योंकि, दर्शनमोहनीयके क्षयसे उसकी उत्पत्ति नहीं होती। सासादन परिणाम क्षायोपशमिक भी नहीं है, क्योंकि, दर्शनमोहनीयके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे उसकी उत्पत्ति नहीं होती। सासादन परिणाम औपशामिक भी नहीं है, क्योंकि, दर्शनमोहनीयके उपशमसे उसकी उत्पत्ति नहीं होती। सासादन परिणाम औदयिक भी नहीं है, क्योंकि, दर्शनमोहनीयके उदयसे उसकी उत्पत्ति नहीं होती। अतएव पारिशेष न्यायसे पारिणामिक भावसे ही सासादन परिणाम होता है। शंका-अनन्तानुबन्धी कषायोंके उदयसे सासादन गुणस्थान पाया जाता है, अतएव उसे औदयिक भाव क्यों नहीं कहते ? समाधान नहीं कहते, क्योंकि, दर्शनमोहनीयके उदय, उपशम, क्षय व क्षयोपशमके विना उत्पन्न होनेसे सासादन गुणस्थानका कारण चरित्र मोहनीय कर्म ही हो १ प्रतिषु चरित्तमोहणीयस्स ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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