SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८] छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, १, ७१. खड्याए लद्धीए ॥ ७१ ॥ दसणमोहणीयस्स णिस्सेसविणासो खओ णाम । तम्हि उप्पण्णजीवपरिणामो लद्धी णाम । तीए लद्धीए खझ्यसम्मादिट्ठी होदि । वेदगसम्मादिट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ७२ ॥ सुगममेदं । खओवसमियाए लद्धीए ॥ ७३ ॥ तं जहा- सम्मत्तदेसघादिफद्दयाणमणंतगुणहाणीए उदयमागदाणमइदहरदेसघादितणेण उवसंताणं जेण खओरसमसण्णा अस्थि तेण तत्थुप्पण्णजीवपरिणामो खओवसमलद्धीसण्णिदो । तीए खओवसमलद्धीए वेदगसम्मत्तं होदि । उवसमसम्माइट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ७४ ॥ सुगमं । उवसमियाए लद्धीए ॥ ७५॥ क्षायिक लब्धिसे जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि होता है ॥ ७१ ॥ दर्शनमोहनीय कर्मके निश्शेष विनाशको क्षय कहते हैं, और उस क्षयसे जो जीवपरिणाम उत्पन्न होता है वह क्षायिक लब्धि कहलाती है। उसी क्षायिक लब्धिसे जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि होता है। जीव वेदकसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥ ७२ ॥ यह सूत्र सुगम है। क्षायोपशामिक लब्धिसे जीव वेदकसम्यग्दृष्टि होता है । ७३ ॥ वह इस प्रकार है- अनन्तगुणी हानिके द्वारा उदयमें आये हुए तथा अत्यन्त अल्प देशघातित्त्वके रूपसे उपशान्त हुए सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृतिके देशघाती स्पर्धकोका चूंकि क्षयोपशम नाम दिया गया है, इसीलिये उस क्षयोपशमसे उत्पन्न जीवपरिणामको क्षयोपशम लब्धि कहते हैं । उसी क्षयोपशम लब्धिसे वेदक सम्यक्त्व होता है। जीव उपशमसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥७४ ॥ यह सूत्र सुगम है। औपशमिक लब्धिसे जीव उपशमसम्यग्दृष्टि होता है ॥ ७५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy