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________________ २, १, ७०. ] सामित्ताणुगमे सम्मत्तमग्गणा सम्मत्ताणुवादेण सम्माट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ६८ ॥ किमोदइएण किमुवसमिएण किं खइएण किं खओवसमिएण किं पारिणामिएणेत्ति बुद्धीए काऊदं कथं होदिति वृत्तं । उवसमिया खड्याए खओवसमियाए लद्धीए ॥ ६९ ॥ दंसणमोहणीयस्स उवसमेण उवसमसम्मत्तं, होदि, खरण खइयं होदि, खओवसमेण वेदगसम्मतं । एदेसिं तिहिं सम्मत्ताण जमेयत्तं तं सम्भाइड्डी णाम । तिस्से इमे तिणि भावा जेण अस्थि तेण सम्माइट्टी उवसमियाए खइयाए खओवसमियाए लडीए होदिति उत्तं । कधमेयस्स तिष्णि भावा ? ण, पुत्रसामण्णस्स एक्क्स्स अक्क्रमेणाणेयचणाणं जहा विरोहो णत्थि तहा एयस्स बहुपरिणामेहि विरोहाभावादो | खइयसम्म इट्टी नाम कथं भवदि ? ॥ ७० ॥ सुगममेदं । सम्यक्त्वमार्गणानुसार जीव सम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ।। ६८ ।। क्या औदयिक भावसे सम्यग्दृष्टि होता है, कि औपशमिक भावसे, कि क्षायिक भावसे, कि क्षायोपशमिक भावसे, कि पारिणामिक भावसे, ऐसा मनमें विचार कर पूछा गया है कि कैसे होता है । aratमक, क्षायिक और क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव सम्यग्दृष्टि होता है ।। ६९ ।। [ १०७ दर्शनमोहनीयके उपशम से उपशम सम्यक्त्व होता है, क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व होता है, और क्षयोपशमसे वेदक सम्यक्त्व होता है । इन तीनों सम्यक्त्वोंका जो एकत्व है उसीका नाम सम्यग्दृष्टि है। चूंकि उस सम्यग्दृष्टिके ये तीन भाव होते है, इसीलिये सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक लब्धि से होता है, ऐसा कहा गया है । शंका - एक ही सम्यग्दृष्टिके तीन भाव कैसे होते हैं ? समाधान जैसे स्पष्ट है सामान्य जिसका ऐसी एक ही वस्तुमें एक साथ अनेक वर्ण होते हुए भी कोई विरोध नहीं आता, उसी प्रकार एक ही सम्यग्दर्शनके अनेक परिणाम होने में कोई विरोध नहीं है । Jain Education International जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि कैसे होता है १ ।। ७० ॥ यह सूत्र सुगम है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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