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२, १, ५५. ]
सामित्ताणुगमे संजममग्गणा सुगममेदं । उवसमियाए खड्याए लद्धीए ॥ ५३॥
उवसामग-क्खवगसुहुमसांपराइयगुणट्ठाणेसु सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमस्सुवलंभादो उपसमियाए खइयाए लद्धीए सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमो । उवसंत-खीणकसायादिसु जहाक्खादविहारसुद्धिसंजमुवलंभादो उवसमियाए खड्याए लद्धीए जहाक्खादविहारसुद्धिसंजमो।
असंजदो णाम कधं भवदि ? ॥ ५४ ॥ सुगममेदं। संजमघादीणं कम्माणमुदाण ॥ ५५ ॥
अपञ्चक्खाणावरणस्स उदओ चेव असंजमस्स हेदू, संजमासंजमपडिसेहमुहेण सव्वसंजमघादित्तादो । तदो संजमघादीणं कम्माणमुदएणेत्ति कधं घडदे ? ण, इदरेसिं पि चरित्तावरणीयाणं कम्माणमुदएण विणा अपच्चक्खाणावरणस्स देससंजमघायणे सामस्थि
यह सूत्र सुगम है।
औपशमिक और क्षायिक लब्धिसे जीव सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत होता है ॥ ५३॥
उपशामक और क्षपक दोनों प्रकारके सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानों में सूक्ष्मसांपरायिकशुद्धिसंयमकी प्राप्ति होती है, इसीलिये औपशमिक व क्षायिक लब्धिसे सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयम होता है।
__ उपशान्तकपाय, क्षीणकषाय आदि गुणस्थानोंमें यथाख्यातविहारशुद्धिसंयमकी प्राप्ति होनेसे औपशामिक व क्षाायक लब्धिसे यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम होता है।
जीव असंयत कैसे होता है ? ॥५४॥ यह सूत्र सुगम है। संयमके घाती कर्मोके उदयसे जीव असंयत होता है ॥ ५५ ॥
शंका-एक अप्रत्याख्यानावरणका उदय ही असंयमका हेतु माना गया है, क्योंकि, वही संयमासंयमके प्रतिषेधसे प्रारम्भ कर समस्त संयमका घाती होता है। तब फिर संयमघाती कौके उदयसे असंयत होता' ऐसा कहना कैसे घटित होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, दूसरे भी चारित्रावरण कोंके उदयके विना केवल अप्रत्याख्यानावरणके देशसंयमको घात करनेका सामर्थ्य नहीं होता।
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