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________________ ९६ ] छक्खंडागमे खुदाबंधो [ २, १, ५६. याभावादो | संजमो णाम जीवसहावो, तदो ण सो अण्णेहि विणासिज्जदि तव्त्रिणा से जीवदवस व विणासप्पसंगादो ? ण, उवजोगस्सेव संजमस्स जीवस्स लक्खणत्ताभावादो । किं लक्खणं ? जस्साभावे दव्वस्साभावो होदि तं तस्स लक्खणं, जहा पोग्गल - दव्वस्स रूव-रस-गंध-फासा, जीवस्स उवजोग । तम्हा ण संजमाभावेण जीवदव्वस्साभावो इदि । दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी णाम कथं भवदि ? ॥ ५६ ॥ एत्थ पुत्रं वणिक्खेवो कायव्वो । ण दंसणमत्थि विसयाभावादो | ण बज्झत्थसामण्णगहणं दंसणं, केवलदंसणस्स अभावप्पसंगादो । कुदो ? केवलणाणेण तिकालगोयतराणंतत्थ-वेंजणपज्जयसरूयेसु सव्वदव्वेसु अवगएसु केवलदंसणस्स विसयाभावा । शंका- संयम तो जीवका स्वभाव ही है, इसीलिये वह अन्यके द्वारा विनष्ट नहीं किया सकता, क्योंकि, उसका विनाश होनेपर तो जीव द्रव्यके भी विनाशका प्रसंग आजायगा ? समाधान -- नहीं आयगा, क्योंकि, जिस प्रकार उपयोग जीवका लक्षण माना गया है, उस प्रकार संयम जीवका लक्षण नहीं होता । शंका- लक्षण किसे कहते हैं ? समाधान — जिसके अभाव में द्रव्यका भी अभाव हो जाता है वही उस द्रव्यका लक्षण है । जैसे- पुद्गल द्रव्यका लक्षण रूप, रस, गंध और स्पर्शः व जीवका उपयोग | अतएव संयम के अभाव में जीव द्रव्यका अभाव नहीं होता । दर्शनमार्गणानुसार जीव चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी व अवधिदर्शनी कैसे होता है ? ।। ५६ ।। यहां पूर्वानुसार निक्षेप करना चाहिये । शंका- दर्शन है ही नहीं, क्योंकि, उसका कोई विषय नहीं है । बाह्य पदार्थोंके सामान्यको ग्रहण करना दर्शन नहीं हो सकता, क्योंकि वैसा माननेपर केवलदर्शन के अभावका प्रसंग आजायगा । इसका कारण यह है कि जब केवलज्ञानके द्वारा त्रिकाल - गोचर अनन्त अर्थ और व्यंजन पर्याय सरूप समस्त द्रव्योंको जान लिया जाता है, तब केवलदर्शन के लिये कोई विषय ही नहीं रहता । ऐसा तो हो नहीं सकता कि केवल - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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