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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ५०. परिहारसुद्धिसंजदो संजदासंजदो णाम कधं भवदि? ॥५०॥ एत्थ वि णय-णिक्खेवे अस्सिदूण पुव्वं व चालणा कायव्या । खओवसमियाए लद्धीए ॥५१॥
चदुसंजलण-णवणोकसायाण सव्वधादिफद्दयाणमणंतगुणहाणीए खयं गंतूण देसघादित्तणेणुवसंतफद्दयाणमुदएण परिहारसुद्धिसंजमुप्पत्तीदो खओवसामियाए लद्वीए परिहारसुद्धिसंजमो । चदुसंजलण-णवणोकसायाणं खओवसमसण्णिददेसघादिफयाणमुदएण संजमासंजमुप्पत्तीदो खओवसमलद्धीए संजमासंजमो । तेरसण्हं पयडीणं देसधादिफद्दयाणमुदओ संजमलंभणिमित्तो कधं संजमासंजमणिमित्तं पडिबज्जदे ? ण, पच्चक्खाणावरणसव्वघादिफद्दयाणमुदएण पडिहयचदुसंजलणादिदेसघादिफदयागभुदयस्स संजमासंजमं मोत्तूण संजमुप्पायणे असमत्थत्तादो।।
सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदो जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदो णाम कधं भवदि ? ॥ ५२॥
जीव परिहारशुद्धिसंयत और संयतासंयत कैसे होता है ? ॥ ५० ॥ यहां भी नय और निक्षेपोंका आश्रय लेकर पूर्ववत् चालना करना चाहिये । क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव परिहारशुद्धिसंयत व संयतासंयत होता है ॥५१॥
चार संज्वलन और नव नोकषायोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके अनन्तगुणी हानि द्वारा क्षयको प्राप्त होकर देशघाती रूपसे उपशान्त हुए स्पर्धकोंके उदयसे परिहारशुद्धिसंयमकी उत्पत्ति होती है, इसीलिये क्षायोपशमिक लब्धिसे परिहारशुद्धिसंयम होता है। चार संज्वलन और नव नोकषायोंके क्षयोपशम संज्ञावाले देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे संयमासंयमकी उत्पत्ति होती है, इसीलिये क्षयोपशम लब्धिसे संयमासंयम होता है।
शंका-चार संज्वलन और नव नोकषाय, इन तेरह प्रकृतियोंके देशघाती स्पर्धकोंका उदय तो संयमकी प्राप्तिमें निमित्त होता है, वह संयमासंयमका निमत्त कैसे स्वीकार किया गया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि प्रत्याख्यानावरणके सर्वघाती स्पर्धोके उदयसे जिन चार संज्वलनादिकके देशघाती स्पर्धकोंका उदय प्रतिहत हो गया है उस उदयके संयमासंयमको छोड़ संयम उत्पन्न करनेका सामर्थ्य नहीं होता।
जीव सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत कैसे होता है ॥५२॥
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