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८४] .. छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ४४. णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणी आभिणिबोहियणाणी सुदणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी णाम कधं भवदि ? ॥४४॥ .
तत्थ ताव मदिअण्णाणस्स उच्चदे- मदिअण्णाणकारणं दुविहं दव्वकारणं भावकारणं चेदि । तत्थ दबकारणं मदिअण्णाणणिमित्तदव्यं । तं दुविहं कम्म-णोकम्मभेएण । कम्मं तिविहं बंधुदय-संतमिदि, ओग्गहावरणादिभेएण अणेयविहं वा । णोकम्मदव्वं तिविहं सचित्त-अचित्त-मिस्समिदि । एदेसिं दव्याणं जा मदिअण्णाणुप्पायणसत्ती तं जाव कारणं । एदेहितो उप्पण्णमदिअण्णाणी सो कधं भवदि केण पयारेण होदि त्ति वुत्तं होदि । एवं सेसणाणाणं पि वत्तव्यं ।
___एत्थ चोदओ भणदि- अण्णाणमिदि वुत्ते किं णाणस्स अभावो घेप्पदि आहो ण घेप्पदि त्ति ? णाइल्लो पक्खो मदिणाणाभावे मदिपुलं सुदमिदि कट्ट सुदणाणस्स वि अभावप्पसंगादो । ण चेदं पि, ताणमभावे सबणाणाणमभावप्पसंगा । णाणाभावे ण
ज्ञानमार्गणानुसार जीव मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, आमिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी किस प्रकार होता है ? ॥४४॥
इनमेसे प्रथम मतिअज्ञानका कथन करते हैं- मत्यज्ञानका कारण दो प्रकारका है -द्रव्यकारण और भावकारण । उनमेंसे द्रव्यकारण मतिअज्ञानका निमित्तभूत द्रव्य है.जो कर्म और नोकर्मके भेदसे दो प्रकारका है। कर्मद्रव्यकारण तीन प्रकारका हैबन्धकर्मद्रव्य, उदयकर्मद्रब्य और सत्त्वकर्मद्रव्य । अथवा, यह कर्मद्रव्य अवग्रहावरण आदि भेदसे अनेक प्रकारका है। नोकर्मद्रव्य तीन प्रकारका है- सचित्त नोकर्मद्रव्य, अचित्त नोकर्मद्रव्य और मिश्र नोकर्मद्रव्य । इन द्रव्योंकी जो मतिअज्ञानको उत्पन्न करनेवाली शक्ति है वही मतिअज्ञानकी कारणभूत है। इन सब कारणोंसे जो मतिअज्ञानी होता है वह कैसे अर्थात् किस प्रकारसे होता है, यह अर्थ कहा गया है। इसी प्रकार शेष ज्ञानोंके विषयमें भी कहना चाहिये।
शंका-यहां शंकाकार कहता है कि अज्ञान कहने पर क्या ज्ञानका अभाव ग्रहण किया है या नहीं किया? प्रथम पक्ष तो बन नहीं सकता, क्योंकि मतिज्ञानका अभाव माननेपर चूंकि ‘मतिपूर्वक ही श्रुतज्ञान होता है' इसलिये श्रुतज्ञानके भी अभावका प्रसंग आजायगा। और ऐसा भी माना जा सकता नहीं है, क्योंकि, मति और श्रुत दोनों शानों के अभाव में सभी ज्ञानोंके अभावका प्रसंग आजाता है। ज्ञानके अभावमें
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