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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ४०. कारणाभावादो कज्जाभावस्स' णाइयत्तादो। किंतु उवसमसेडिम्हि संतेसु दबकम्मक्खंधेसु भाववेदाभावो ण घडदे, संते कारणे कज्जाभावविरोहादो? ण, ओसहाणं दिसत्तीणं सामजीवे पवुत्ताणं आमेण पडिहयसत्तीणं सकज्जकरणाणुवलंभादो ।
कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई णाम कधं भवदि ? ॥ ४०॥
कोधो दुविहो दव्वकोधो भावकोधो चेदि । दव्यकोधो णाम भावकोधुप्पत्तिणिमित्तदव्वं । तं दुविहं कम्मदव्यं णोकम्मदवं चेदि । जं तं कम्मदव्वं तं तिविहं बंधुदय-संतभेएण । जं तं कोहणिमित्तणोकम्मदव्वं णेगमणयाहिप्पाएण लद्धकोहववएसं तं दुविहं सचित्तमचित्तं चेदि । एदे कोधकसाया जस्स अस्थि सो कोधकसाई । एत्थ अप्पिदकोधकसाई कधं भवदि केण पयारेण होदि त्ति पुच्छा कदा । एवं सेसकसायाणं
क्योंकि, कारणके अभावसे कार्यका अभाव मानना न्यायसंगत है । किन्तु उपशमश्रेणीमें त्रिवेद सम्बन्धी पुद्गलद्रव्यस्कंधोंके रहते हुए भाववेदका अभाव घटित नहीं होता, क्योंकि, कारणके सद्भावमें कार्यका अभाव मानने में विरोध आता है ?
समाधान-विरोध नहीं आता, क्योंकि, जिनकी शक्ति देखी जा चुकी है ऐसी औषधियां जब किसी आमरोग सहित अर्थात् अजीर्णके रोगी जीवको दी जाती हैं, तब उस अजीर्ण रोगसे उन औषधियोंकी वह शक्ति प्रतिहत हो जाती है और वे अपने कार्य करनेमें असमर्थ पायी जाती हैं।
कषायमार्गणानुसार जीव क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी कैसे होता है ? ॥ ४०॥
क्रोध दो प्रकारका है- द्रव्यक्रोध और भावक्रोध । भावक्रोधकी उत्पत्तिके निमित्तभूत द्रव्यको द्रव्यक्रोध कहते हैं। वह द्रव्यक्रोध दो प्रकारका है- कर्मद्रव्य और नोकर्मद्रव्य । कर्मद्रव्य बंध, उदय और सत्त्वके भेदसे तीन प्रकारका है । क्रोधके निमित्तभूत जिस नोकर्मद्रव्यने नैगम नयके अभिप्रायसे क्रोध संज्ञा प्राप्त की है वह दो प्रकारका है- सचित्त और अचित्त । ये सब क्रोधकषाय जिस जीवके होते हैं वह क्रोधकषायी है। प्रस्तुत सूत्रमें यह बात पूछी गयी है कि विवक्षित क्रोधकषायी कैसे अर्थात् किस प्रकारसे होता है । इसी प्रकार शेष कषायोंका भी कथन करना चाहिये । अविवक्षित
१ प्रतिषु ' कज्जाभावस्स वि ' इति पाठः । मप्रतौ तु 'वि ' इति पाठः नास्ति । २ प्रतिषु 'सकज्जकारणाणुवलंभादो' इति पाठः । ३ प्रतिषु 'कोसाणिमित्त-' इति पाठः ।
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