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२, १, ३९.] सामित्ताणुगमे वेदमग्गणा
[८१ उवसमियाए खइयाए लद्धीए ॥ ३९ ॥
अप्पिदवेदोदएण उवसमसेडिं चढिय मोहणीयस्स अंतरं करिय जहाजोग्गट्ठाणम्मि अप्पिदवेदस्स उदय-उदीरणा-ओकट्टकट्टण-परपयडिसंकम-ट्ठिदि-अणुभागखंडएहि विणा जीवम्मि पोग्गलखंधाणमच्छणमुवसमो । तत्थ जा जीवस्स वेदाभावसरूवा लद्धी तीए अवगदवेदो जेण होदि तेण उपसमियाए लद्धीए अवगदवेदो होदि त्ति वुत्तं । अप्पिदवेदोदएण खवगसेडिं चढिय अंतरकरणं करिय जहाजोगट्ठाणे अप्पिदवेदस्स पोग्गलखंधाणं द्विदि-अणुभागेहि सह जीवपदेसेहितो णिस्सेसोसरणं खओ णाम । तत्थुप्पण्णजीवपरिणामो खइओ, तस्स लद्धी खइया लद्धी, तीए खइयाए लद्धीए वा अवगदवेदो होदि ।
वेदाभाव-लद्धीणं एक्ककालम्मि चेव उप्पज्जमाणीणं कधमाहाराहेयभावो, कज-कारणभावो वा ? ण, समकालेणुप्पज्जमाणच्छायंकुराणं कज्ज-कारणभावदंसणादो, घडुप्पत्तीए कुमूलाभावदसणादो च । होदु णाम तिवेददव्यकम्मक्खएण भाववेदाभावो,
औपशमिक व क्षायिक लब्धिसे जीव अपगतवेदी होता है ॥ ३९ ॥
विवक्षित वेदके उदय सहित उपशमश्रेणीको चढ़कर, मोहनीय कर्मका अन्तर करके, यथायोग्य स्थानमें विवक्षित वेदके उदय, उदीरणा, अपकर्षण, उत्कर्षण, परप्रकृतिसंक्रम, स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकके विना जीवमें जो पुद्गलस्कंधोंका अवस्थान होता है उसे उपशम कहते हैं। उस समय जो जीवकी वेदके अभाव रूप लब्धि है उसीसे जीव अपगतवेदी होता है और इसीसे यह कहा गया है कि उपशमलब्धिसे जीव अपगतवेदी होता है। .
अथवा-विवक्षित वेदके उदयसे क्षपकश्रेणीको चढ़कर, अन्तरकरण करके, यथायोग्य स्थानमें विवक्षित वेदसम्बन्धी पुदलस्कंधोंके स्थिति और अनुभाग सहित जीवप्रदेशोंसे निःशेषतः दूर हो जानेको क्षय कहते हैं। उस अवस्थामें जो जीवका परिणाम होता है वह क्षायिक भाव है। उसी भावकी लब्धिको क्षायिक लब्धि कहते हैं। उस क्षायिक लब्धिसे अपगतवेदी होता है।
शंका-वेदका अभाव और उस अभाव सम्बन्धी लब्धि ये दोनों जब एक ही कालमें उत्पन्न होते हैं, तब उनमें आधार-आधेयभाव या कार्यकारणभाव कैसे बन सकता है ?
समाधान-बन सकता है, क्योंकि, समान कालमें उत्पन्न होनेवाले छाया और अंकुरमें कार्य-कारणभाव देखा जाता है, तथा घटकी उत्पत्तिके कालमें ही कुशूलका अभाव देखा जाता है।
शंका-तीनों वेदोंके द्रव्यकर्मोंके क्षयसे भाववेदका अभाव भले ही हो,
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