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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ३८. ण पढमपक्खो, एक्कम्हि कल-कारणभावविरोहादो ? एत्थ परिहारो वुच्चदे । ण विदियपक्खो, अणभुवगमादो । ण च पढमपक्खम्मि वुत्तदोसो संभवदि, परिणामादो परिणामिणो कथंचिभेदेण एयत्ताभावादो । कुदो ? चारित्तमोहणीयस्स उदओ कारण, कर्ज पुण तदुदयविसिट्ठो इत्थिवेदसण्णिदो जीवो। तेण पजाएण तस्सुप्पजमाणत्तादो ण कारण-कजभावो एत्थ विरुज्झदे । एवं सेसवेदाणं पि वत्तव्यं । सेसा वि भावा एत्थ संभवंति, तेहि भावहि वेदाणं णिदेसो किण्ण कदो ? ण, वेदणिबंधणपरिणामस्स खओक्समियादिपरिणामाभावा वेदविसिट्ठजीवदव्वडियसेसभावाणं पि तिवेयंसाहारणाणं तद्धतुत्तविरोहादो।
अवगदवेदो णाम कधं भवदि? ॥ ३८ ॥ एत्थ णय-णिक्खेव-भावे अस्सिदण पुव्वं व चालणा कायव्वा ।
जा सकता, क्योंकि, एक ही वस्तुमें कार्य और कारण भाव स्थापित करनेमें विरोध उत्पन्न होता है?
समाधान-इस शंकाका परिहार कहते हैं । द्वितीय पक्ष तो ठीक नहीं है, क्योंकि वैसा माना ही नहीं गया है । किन्तु प्रथम पक्षमें जो दोष बतलाया गया है वह घटित नहीं होता, क्योंकि, परिणामसे पां
1. क्योकि.परिणामसे परिणामी कथंचित भिन्न होता है जिससे उनमें एकत्त्व नहीं पाया जाता । जैसे-चारित्रमोहनीयका उदय तो कारण है, और उसका कार्य है उस कर्मोदयसे विशिष्ट स्त्रीवेदी कहलानेवाला जीव । चूंकि विवक्षित कर्मोदयसे उस पर्यायसे विशिष्ट वह जीव उत्पन्न हुआ है, अतएव यहां कारण-कार्य भाव विरोधको प्राप्त नहीं होता । इसी प्रकार शेष वेदोंके विषयमें भी कहना चाहिये।
शंका-शेष क्षायोपशमिक आदि भाव भी तो यहां संभव हैं, फिर उन भावोंसे घेदोंका निर्देश क्यों नहीं किया ?
समाधान नहीं किया, क्योंकि, वेदमूलक परिणाममें क्षायोपशमिकादि परिणामोंका अभाव है तथा वेदविशिष्ट जीव द्रव्यमें स्थित शेष भावोंके तीनों वेदों में साधारण होनेसे उन्हें विवक्षित वेदका हेतु मानने में विरोध आता है।
जीव अपगतवेदी कैसे होता है ? ॥ ३८॥ यहां नय, निक्षेप और भावोंका आश्रय कर पूर्वके समान चालना करना चाहिये।
१ कप्रतौ 'तिवेद' इति पाठः । २ प्रतिषु — तद्धेवुत्तविरोहादो' मप्रतौ । तद्देववृत्तिविरोहादो ' इति पाठः ।
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