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७२ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, २५. वाउकाइयणामाए उदएण ॥२५॥ वणफइकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥ २६ ॥ वणप्फइकाइयणामाए उदएण ॥ २७ ॥
एदेसिं सुत्ताणमत्थो सुगमो । णवरि आउकाइयादीणं एक्कवीस-चउवीस-पंचवीस-छब्बीसमिदि चत्तारि उदयट्ठाणाणि । सत्तावीसाए द्वाणं णत्थि, आदावुज्जोवाणमुदयाभावा । णवरि आउ-वणप्फदिकाइयाणं सत्तावीसाए सह पंच उदयहाणाणि, आदावेण विणा तत्थ उज्जोवस्स कत्थ वि उदयदंसणादो ।
तसकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥ २८ ॥ सुगममेदं । तसकाइयणामाए उदएण ॥ २९॥
एदं पि सुत्तं सुगमं । णवरि वीसाए एक्कवीसाए पणुवीसाए छव्वीसाए सत्तावीसाए अट्ठावीसाए एगुणतीसाए तीसाए एक्कत्तीसाए णवण्णमट्टण्णमुदयट्ठाणमिदि
वायुकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव वायुकायिक होता है ॥ २५॥ जीव वनस्पतिकायिक कैसे होता है ? ॥ २६ ॥ वनस्पतिकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव वनस्पतिकायिक होता है ॥ २७ ॥
इन सूत्रोंका अर्थ सुगम है । विशेषता केवल इतनी है कि अप्कायिक आदि जीवोंके इक्कीस, चौवीस, पञ्चीस और छन्वीस प्रकृतियोंवाले चार उदयस्थान हैं। उनके सत्ताईस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान नहीं है, क्योंकि उनके आताप और उद्योत इन दो प्रकृतियोंके उदयका अभाव होता है। किन्तु अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवोंके सत्ताईस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानको मिलाकर पांच उदयस्थान होते हैं, क्योंकि, उनके आतापके विना उद्योतका कहीं कहीं उदय देखा जाता है ।
जीव त्रसकायिक कैसे होता है ? ॥ २८ ॥ यह सूत्र सुगम है। त्रसकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव त्रसकायिक होता है ॥ २९॥
यह सूत्र भी सुगम है। विशेषता यह है कि त्रसकायिक जीवोंके वीस, इक्कीस, पच्चीस, छव्वीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस, नौ और आठ
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