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________________ २, १, २४. ] सामित्ताणुगमे कायमग्गणा [ ७१ कमेहि होदव्यमिदि ? ण एस दोसो, इच्छिज्जमाणादो | पुढविकाइयाणं एक्कवीसाए चवीसाए पंचवीसाए छत्रीसाए सत्तवीसाए ति पंच उदयद्वाणाणि । २१ । २४ । २५ । २६ । २७ । एदेसि ठाणाणं पयडीओ उच्चारिय घेत्तव्बाओ । एवमेदासु बहुसु पयडीसु उदयमागच्छमाणासु कथं पुढचिकाइयणामाए उदएण पुढविकाइओत्ति जुज्जदे ? ण, इदरपयडीणमुदयस्स साहारणत्तुवलंभादो । ण च पुढविकाइयणामकम्मोदओ तहा साहारणो, अण्णत्थेदस्साणुवलंभा । आउकाईओ णाम कथं भवदि ? ॥ २० ॥ आउकाइयणामाए उदएण ॥ २१ ॥ काइओ णाम कथं भवदि ? ॥ २२ ॥ ते काइयणामाए उदएण ॥ २३ ॥ वाकाओ णाम कधं भवदि ? ॥ २४ ॥ आदिक नामों वाले भी नामकर्म होना चाहिये ? समाधान --- यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, यह बात तो इष्ट ही है । शंका- पृथिवीकायिक जीवोंके इक्कीस, चौवीस, पच्चीस, छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतियोंवाले पांच उदयस्थान होते हैं । २१ । २४ । २५ | २६ | २७ । इन पांच उदयस्थानोंकी प्रकृतियोंका उच्चारण करके ग्रहण करना चाहिये । इस प्रकार इन बहुत प्रकृतियोंके (एक साथ ) उदय आनेपर यह कैसे उपयुक्त हो सकता है कि पृथिवीकायिक नामप्रकृति के उदयसे जीव पृथिवीकायिक होता है ? समाधान — नहीं, क्योंकि दूसरी प्रकृतियोंका उदय तो अन्य पर्यायोंके साथ भी पाया जाता है और इसलिये वह साधारण है । किन्तु पृथिवीकायिक नामकर्मका उदय उस प्रकार साधारण नहीं है, क्योंकि, अन्य पर्यायों में वह नहीं पाया जाता । जीव अपकायिक कैसे होता है ? ॥ २० ॥ अपकायिक नाम प्रकृतिके उदयसे जीव अपकायिक होता है ॥ २१ ॥ जीव अनिकायक कैसे होता है ? ॥ २२ ॥ अग्निकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव अग्निकायिक होता है || २३ || जीव वायुकायिक कैसे होता है ! ॥ २४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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