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७०) . छक्खंडागमे खुदाबंधी
[२, १, १८. प्पण्णत्तादो खइयाए लद्धीए अणिदियत्तं होदि ।
कायाणुवादेण पुढविकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥ १८ ॥
पुढविकायादो किण्णिग्गदो भूदपुचो त्ति पुढविकाइओ वुच्चदि, किं पुढविकाइयाणमहिमुहो णेगमणयावलंबणेण पुढविकाइओ बुच्चदि, किं पुढविकाइयणामकम्मोदएणेत्ति बुद्धीए काऊण कधं होदि त्ति वुत्तं ।
पुढविकाइयणामाए उदएण ॥ १९ ॥
णामपयडीसु पुढवि-आउ-तेउ-बाउ-वणप्फदिसण्णिदाओ पयडीओ ण णिहिट्ठाओ, तेण पुढविकाइयणामाए उदएण पुढविकाइओ त्ति णेदं घडदे ? ण, एइंदियजादिणामाए एदासिमंतभावादो । ण च कारणेण विणा कज्जाणमुप्पत्ती अस्थि । दीसंति च पुढविआउ-तेउ-वाउ-वणप्फदि-तसकाइयादिसु अणेगाणि कज्जाणि । तदो कज्जमेत्ताणि चेव कम्माणि वि अत्थि ति णिच्छओ काययो । जदि एवं तो भमर-महुवरसलह-पयंग-गोम्हिदगोव-संख-मकुण-णिबब-जबु-जबीर कयंवादिसण्णिदेहि वि णाम
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होने के कारण क्षायिक लब्धिके द्वारा ही जीव अनिन्द्रिय होता है ।
कायमार्गणानुसार जीव पृथिवीकायिक कैसे होते है ? ॥ १८ ॥
क्या पृथिवीकायसे निकला हुआ जीव भूतपूर्व नयसे पृथिवीकायिक कहलाता है ? या पृथिवीकायिकोंके अभिमुख हुआ जीव नैगम नयके अवलम्बनसे पृथिवीकायिक कहा जाता है ? या पृथिवीकायिक नामकर्मके उदयसे पृथिवीकायिक कहा जाता है ? ऐसी मनमें शंका करके पूछा गया है कि कैसे होता है।
पृथिवीकायिक नामकर्मके उदयसे जीव पृथिवीकायिक होता है ॥ १९ ॥
शंका-नामकर्मकी प्रकृतियोंमें पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, और वनस्पति नामकी प्रकृतियां निर्दिष्ट नहीं की गई। इसलिये 'पृथिवीकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव पृथिवीकायिक होता है' यह बात घटित नहीं होती? . समाधान नहीं, क्योंकि एकेन्द्रिय जाति नामकर्मकी प्रकृतिमें उक्त सब प्रकृतियोंका अन्तर्भाव हो जाता है। कारणके विना तो कार्योंकी उत्पत्ति होती नहीं है। और पृथिवी, अप् , तेज, वायु, वनस्पति और प्रसकायिक आदि जीवों में उनकी उक्त पर्यायों रूप अनेक कार्य देखे जाते हैं। इसलिये जितने कार्य हैं उतने उनके कारणरूप कर्म भी हैं, ऐसा निश्चय कर लेना चाहिये।
शंका-यदि जितने कार्य हो उतने ही कारणरूप कर्म आवश्यक हो तो भ्रमर, मधुकर, शलभ, पतंग,गोम्ही, इन्द्रगोप, शंख, मत्कुण, निव, आम्र, जम्बु, जम्बीर और कदम्ब
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