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२, १,.३१.]
सामित्ताणुगमे कायमग्गणा एक्कारस उदयट्ठाणाणि होति । एदाणि जाणिदूण वत्तव्याणि ।
अकाइओ णाम कधं भवति ? ॥३०॥
छक्काइयणामाणं विणासो पत्थि, मिच्छत्तादिआसवाणं विणासाणुवलंभादो । ण चाणादित्तणेण णिच्चं मिच्छत्तं विणस्सदि, णिच्चस्स विणासविरोहादो। ण मिच्छसादिआसवो सादी, संवरेण णिम्मूलदो ओसरिदासवस्स पुणरुप्पत्तिविरोहादो । एदं सव्वं मणेण अवहारिय अकाइओ णाम कधं होदि त्ति वुत्तं ।
खड्याए लद्धीए ॥ ३१ ॥
ण च अणादित्तादो णिचो आसयो, कूडत्थाणादिं मुच्चा पवाहाणादिम्हि णिच्चत्ताणुवलंभादो । उवलंभे वा ण बीजादीणं विणासो, पवाहसरूवेण तेसिमणादित्तदसणादो। तदो णाणादित्तं साहणं, अणेयंतियादो। ण चासवो कूडत्थाणादिसहावो,
प्रकृतियोंवाले ग्यारह उदयस्थान होते हैं। इनको जानकर कहना चाहिये । (देखो ऊपर पृ. ५२)
जीव अकायिक कैसे होता है ? ॥ ३० ॥
षट्कायिक नामप्रकृतियोंका विनाश तो होता नहीं है, क्योंकि, मिथ्यात्वादिक आस्रवोंका विनाश पाया नहीं जाता । अनादित्वकी अपेक्षा नित्य मिथ्यात्व विनष्ट भी नहीं होता, क्योंकि, नित्यका विनाशके साथ विरोध है। मिथ्यात्वादिक आस्नव सादि भी नहीं है, क्योंकि, संवरके द्वारा निर्मूलतः आस्रवके दूर हो जाने पर उसकी पुनः उत्पत्ति मानने में विरोध आता है । यह सब मनमें धारण करके कहा गया है कि 'जीव अकायिक कैसे होता है।
क्षायिक लब्धिसे जीव अकायिक होता है ॥ ३१ ॥
अनादि होनेसे आस्रव नित्य नहीं हो जाता, क्योंकि कूटस्थ अनादिको छोड़कर प्रवाह अनादिमें नित्यत्व नहीं पाया जाता । यदि पाया जाय तो बीजादिकका विनाश नहीं होना चाहिये, क्योंकि, प्रवाह रूपसे तो उनमें अनादित्व देखा जाता है । इसलिये अनादित्व आस्रवके नित्यत्व सिद्ध करनेमें साधन नहीं हो सकता, क्योंकि, वह अनैकान्तिक है अर्थात् पक्ष और विपक्षमें समानरूपसे पाया जाता है। और आस्रव कूटस्थ अनादि स्वभाववाला है नहीं, क्योंकि, प्रवाह-अनादि रूपसे आये हुए
१ प्रतिषु ण माणादित्तिणेण णिच्चमिच्छत्तं ' इति पाठः ।
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