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१, ९-१, २१.] चूलियाए पगडिसमुक्त्तिणे मोहणीय-उत्तरपयडीओ तिविहत्तुवलंमा । तत्थ अत्तागम-पदत्थसद्धाए जस्सोदएण सिथिलत्तं होदि, तं सम्मत्त । कधं तस्स सम्मत्तववएसो ? सम्मत्तसहचरिदोदयत्तादो उवयारेण सम्मत्तमिदि उच्चदे । जस्सोदएण अत्तागम-पयत्थेसु असद्धा होदि, तं मिच्छत्तं । जस्सोदएण अत्तागमपयत्थेसु तप्पडिवक्खेसु य अक्कमेण सद्धा उप्पज्जदि तं सम्मामिच्छत्तं । संदेहो कुदो जायदे ? सम्मत्तोदयादो; सव्वसंदेहो मूढत्तं च मिच्छत्तोदयादो । दंसणमोहणीयं संतदो तिविहमिदि कुदो णबदे ? आगमदो लिंगदो य । विवरीदो अहिणिवेसो मूढत्तं संदेहो
उनमें जिस कर्मके उदयसे आप्त, आगम और पदार्थोकी श्रद्धामें शिथिलता होती है वह सम्यक्त्वप्रकृति है।
शंका- उस प्रकृतिका 'सम्यक्त्व' ऐसा नाम कैसे हुआ ?
समाधान-सम्यग्दर्शनके सहचरित उदय होनेके कारण उपचारसे 'सम्यक्त्व' ऐसा नाम कहा जाता है ।
जिस कर्मके उदयसे आप्त, आगम और पदार्थों में अश्रद्धा होती है, वह मिथ्यात्व प्रकृति है । जिस कर्मके उदयसे आप्त, आगम और पदार्थों में, तथा उनके प्रतिपक्षियोंमें अर्थात् कुदेव, कुशास्त्र और कुतत्त्वोंमें, युगपत् श्रद्धा उत्पन्न होती है वह सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति है।
__ शंका-आप्त, आगम और पदार्थों में संदेह किस कर्मके उदयसे उत्पन्न होता है ?
समाधान-सम्यग्दर्शनका घात नहीं करनेवाला संदेह सम्यक्त्वप्रकृतिके उदयसे उत्पन्न होता है । किन्तु सर्व संदेह, अर्थात् सम्यग्दर्शनका सम्पूर्ण रूपसे घात करनेवाला संदेह, और मूढ़त्व मिथ्यात्व कर्मके उदयसे उत्पन्न होता है।
शंका-दर्शनमोहनीय कर्म सत्त्वकी अपेक्षा तीन प्रकारका है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-आगमसे और लिंग अर्थात् अनुमानसे जाना जाता है कि दर्शनमोहनीय कर्म सत्त्वकी अपेक्षा तीन प्रकारका है। विपरीत अभिनिवेश, मूढ़ता और
१ तदेव सम्यक्त्वं शुभपरिणामनिरुद्धस्वरसं यदौदासीन्येनावस्थितमात्मनः श्रद्धानं न निरुणद्धि, तद्वेदय. मानः पुरुषः सम्यग्दृष्टिरित्यभिधीयते । स. सि.; त. रा. वा. ८,९.
२ यस्योदयात्सर्वज्ञप्रणीतमार्गपराङ्मुखस्तत्त्वार्थश्रद्धाननिरुत्सुको हिताहितविचारासमों मिथ्यादृष्टिर्भवति तन्मिथ्यात्वम् । स. सि.; त. रा. वा. ८, ९.
३ तदेव मिथ्यात्वं प्रक्षालनविशेषात् क्षीणाक्षीणमदशक्तिकोद्रववत्सामिद्धस्वरसं तदुमयमित्याख्यायते सम्यग्मिण्यात्वमिति यावत् । स. सि.; त. रा. वा. ८,९.
४ प्रतिषु 'लिंगयदो' इति पाठः।
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