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________________ १, ९-१, २०.] चूलियाए पगडिसमुक्तित्तणे मोहणीय-उत्तरपयडीओ [३७ तत्थ सुह-दुक्खाभावोवदेसादो । दोसु पदेसु एवकारो किमट्ठ कीरदे ? उत्तरोत्तरुत्तरपयडीणमभावपदुप्पायणटुं । मोहणीयस्स कम्मस्स अट्ठावीसं पयडीओ ॥ १९ ॥ एवं संगहणयसुत्तं संगहिदासेसविसेसत्तादो मेहाविजणाणुग्गहकारी । संपहि मज्झिमबुद्धिजणाणुग्गहट्ठमुत्तरं सुत्तं भणदि जं तं मोहणीयं कम्मं तं दुविहं, देसणमोहणीयं चारित्तमोहणीयं चेव ॥२०॥ कधमेदम्हादो मोहणीयस्स कम्मस्स सव्वभेदा अवगम्मंति ? आइरिओवदेसादो। जेत्तिओ एदस्स सुत्तस्स अत्थो तं सव्यमाइरिया परूवेति । तं परूविज्जमाणं महाविणो अवहारयति । तदो एत्तियमेत्तसुत्तेण कज्जसिद्धीदो वित्थारपरूवणं तेसिमणत्थयमिदि । मंदबुद्धिजणाणुग्गहट्टमुत्तरसुत्तं भणदिसुख और दुखके अभाव का उपदेश दिया गया है। शंका-सूत्रमें दोनों पदों पर एवकार किसलिये किया है ? समाधान-वेदनीय कर्मकी उत्तरोत्तर उत्तर-प्रकृतियोंका अभाव बतलानेके लिये दो वार एवकार पद दिया है। मोहनीय कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियां हैं ॥ १९ ॥ यह संग्रहनयाश्रित सूत्र समस्त विशेषों का संग्रह करनेसे मेधावीजनोंका अनुग्रह करनेवाला है। अब मध्यम बुद्धि जनोंके अनुग्रहके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं वह उपर्युक्त मोहनीय कर्म दो प्रकारका है--दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय ॥ २० ॥ शंका- इस सूत्रसे मोहनीयकर्मके सर्व भेद कैसे जाने जाते हैं ? समाधान-आचार्योंके उपदेशसे । इस सूत्रका जितना अर्थ है वह सब आचार्य प्ररूपण करते हैं । उस निरूपण किये गये अर्थको बुद्धिमान् शिष्य अवधारण कर लेते हैं । इसलिये इतने मात्र सूत्र द्वारा कार्यकी सिद्धि होनेसे बुद्धिमान् शिष्योंके लिये विस्तारसे निरूपण करना अनर्थक है । अव मन्दबुद्धिजनोंके अनुग्रहके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं१त. सू. ८, ५. २ त. सू. ८, ९. ३ अ-आप्रत्योः ' तेसिमणण्णत्थयमिदि ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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