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२०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-१, १४. हय-हत्थि-गो-महिसादीणं गहणं बहुविहावग्गहो । एयपयारग्गहणमेयविहावग्गहो । एय-एयविहाणं को विसेसो ? उच्चदे- एगस्स गहणं एयावग्गहो, एगजाईए द्विदएयस्स बहूणं वा गहणमेयविहावग्गहो । आसुग्गहणं खिप्पावग्गहो, सणिग्गहणमखिप्पावग्गहो । अहिमुहअत्थग्गहणं गिसियावग्गहो, अणहिमुहअत्थग्गहणं अणिसियावग्गहो । अहवा उवमाणोवमेयभावेण ग्गहणं णिसियावग्गहो, जहा कमलदलणयणा त्ति । तेण विणा गहणं अणिसियावग्गहो । णियमियगुणविसिट्ठअत्थग्गहणं उत्ताबग्गहो । जधा चक्खिदिएण धवलत्थग्गहणं, घाणिदिएण सुअंधदव्वग्गहणमिच्चादि । अणियमियगुणविसिट्ठदव्यग्गहणमउत्तावग्गहो, जहा चक्खिदिएण गुडादीणं रसस्स ग्गहणं, घाणिदिएण दहियादीण रसग्गहणमिच्चादि । णायमणिस्सिदस्स अंती पददि, एयवत्थुग्गहणकाले चेय तदो पुधभूदवत्थुस्स, ओवरिमभागग्गहणकाले चेय परभागस्स य, अंगुलिगहणकाले
- बहुत प्रकारके अश्व, हस्ती, गौ और महिष आदि पदार्थोंका ग्रहण करना बहुविध-अवग्रह है । एक प्रकारके पदार्थका ग्रहण करना एकविध-अवग्रह है।
शंका-एक और एकविध क्या भेद है ?
समाधान- एक व्यक्तिरूप पदार्थका ग्रहण करना एक-अवग्रह है; और एक जातिमें स्थित एक पदार्थका, अथवा बहुत पदार्थोंका, ग्रहण करना एकविध-अवग्रह है।
___ आशु अर्थात् शीघ्रतापूर्वक वस्तुको ग्रहण करना क्षिप्र-अवग्रह है, और शनैः शनैः ग्रहण करना अक्षिप्र-अवग्रह है। अभिमुख अर्थका ग्रहण करना निःसृत अवग्रह है और अनभिमुख अर्थका ग्रहण करना अनिःसृत-अवग्रह है। अथवा, उपमान उपमेय भावके द्वारा ग्रहण करना निःसृत-अवग्रह है, जैसे- कमलदल-नयना अर्थात् इस स्त्रकि नयन कमलपत्रके समान हैं । उपमान-उपमेय भावके विना ग्रहण करना अनिःसृत-अवग्रह है । नियमित गुण-विशिष्ट अर्थका ग्रहण करना उक्त-अवग्रह है । जैसे-चक्षुरिन्द्रियके द्वारा धवल पदार्थका ग्रहण करना और घ्राणेन्द्रियके द्वारा सुगन्ध द्रव्यका ग्रहण करना, इत्यादि। अनियमित गुण-विशिष्ट द्रव्यका ग्रहण करना अनुक्त-अवग्रह है। जैसे चक्षुरिन्द्रियके द्वारा गुड़ आदिके रसका ग्रहण करना, और घ्राणेन्द्रियके द्वारा दही आदिके रसका ग्रहण करना । यह अनुक्त-अवग्रह अनिःसृत-अवग्रहके अन्तर्गत नहीं है, क्योंकि, एक वस्तुके ग्रहण-कालमें ही, उससे पृथग्भूत वस्तुका, उपरिम-भागके ग्रहण-कालमें ही परभागका और अंगुलिके ग्रहण-कालमें ही देवदत्तका ग्रहण करना अनिःसृत-अवग्रह
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१ बहु-बहुविधयोः कः प्रतिविशेषः ? यावता बहुषु ब्रहविधेष्वपि बहत्वमस्ति । एकप्रकार-मानाप्रकारकृतो विशेषः । स. सि. १, १६.
२ प्रतिषु ' कमलदले णयणा' इति पाठः।
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