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६] छक्खंडागमे जीवठ्ठाणं
[ १, ९-१, ५. वयवा' पज्जवट्ठियणयणिबंधणा उत्तरपयडी णाम । तत्थ मूलपयडिसमुक्कित्तणं पढमं किमद्वं कीरदे ? ण एस दोसो, मूलपयडीए संगहिदासेसुत्तरपयडीए परूविदाए उत्तरपयडिपरूवणुववत्तीदो।
तं जहा ॥४॥
पुच्छासुत्तमेदं किमटुं बुच्चदे ? सुत्तकत्तारस्स पमाणत्तपरूवणादो सुत्तस्स पमाणत्तपरूवणटुं।
णाणावरणीयं ॥५॥
णाणमवबोहो अवगमो परिच्छेदो इदि एयट्ठो। तमावारेदि ति णाणावरणीयं कम्म । णाणविणासयमिदि किण्ण उच्चदे ? ण, जीवलक्खणाणं णाण-दसणाणं विणासाभावा । विणासे वा जीवस्स वि विणासो होज्ज, लक्खणरहिय-लक्खाणुवलंभा । णाणस्स विणासाभावे सव्वजीवाणं णाणत्थित्तं पसज्जदे चे, होदु णाम विरोहाभावा; तथा पर्यायार्थिकनय-निमित्तक प्रकृतिको उत्तरप्रकृति कहते हैं।
शंका-इन दोनों भेदोंमेसे मूलप्रकृतिसमुत्कीर्तन पहले किसलिए करते हैं ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, समस्त उत्तरप्रकृतियोंका संग्रह करनेवाली मूलप्रकृतिके प्ररूपण किये जाने पर ही उत्तरप्रकृतियोंकी प्ररूपणा बन सकती है।
वह प्रकृतिसमुत्कीर्तन किस प्रकार है ? ॥ ४ ॥ शंका-यह पृच्छा-सूत्र किसलिए कहते हैं ?
समाधान-सूत्र-कर्ताको प्रमाणताके प्ररूपणद्वारा सूत्रकी प्रमाणता निरूपण करने के लिए यह पृच्छा-सूत्र कहा है।
ज्ञानावरणीय कर्म है ॥ ५॥
शान, अवबोध, अवगम और परिच्छेद, ये सव एकार्थ-वाचक नाम है। उस ज्ञानको जो आवरण करता है, वह शानावरणीय कर्म है।।
शंका-'ज्ञानावरण' नामके स्थानपर · ज्ञान-विनाशक' ऐसा नाम क्यों नहीं कहा?
समाधान-नहीं, क्योंकि, जीवके लक्षणस्वरूप ज्ञान और दर्शनका विनाश नहीं होता है । यदि ज्ञान और दर्शनका विनाश माना जाय, तो जीवका भी विनाश हो जायगा, क्योंकि, लक्षणसे रहित लक्ष्य पाया नहीं जाता है।
शंका-ज्ञानका विनाश नहीं माननेपर सभी जीवोंके ज्ञानका आस्तित्व प्राप्त होता है ?
१ म प्रतौ 'पुधप्पिदावयवा ' इत्यपि पाठः। २ स. सि. ८, ४. त. रा. वा. ८, ४. ३ प्रतिषु '-लक्खगाणुवलंभा' इति पाठः।
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