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________________ विशेष टिप्पण (89) पर अतिस्थापना उत्तरोत्तर एक एक समय बढ़ती जाती है जब तक कि वह आवलीप्रमाण न हो जाय । इसका अभिप्राय यह है कि यही अतिस्थापना आवलीप्रमाण हो जाने एवं पूर्व उदयावली के समाप्त हो जाने पर स्वयं उदयावली बन जाती है । पृ. २३६-२३७ पर अल्पबहुत्वमें सातवें स्थानपर जो स्थितिकांडक के उत्कीरणका काल बतलाया गया है उसके विषय में विशेषार्थमें कहा ही गया है कि वह लब्धिसारमें नहीं पाया जाता । उसी प्रकार वह जयधवला ( अ. पत्र ९५६ ) पर भी नहीं पाया जाता । पृ. ३३५ से ३४२ तक जो ९७ पदोंका अल्पबहुत्व दिया गया है वह जयधवला (अ. पत्र १०६१ - १०६६ ) पर पाये जानेवाले चूर्णिसूत्रोंसे ठीक मिलता है, पर लब्धिसार गाथा ३६५ से ३९१ तक पाये जानेवाले अल्पबहुत्वसे कुछ स्थलोंपर भिन्न है । जैसे, १७ वें पदके आगे लब्धिसारमें श्रेणीसे उतरनेवालेके लोभकी प्रथमस्थितिका उल्लेख है, १९ वें पदके आगे उतरनेवालेका मानवेदककाल और नोकपायोंका गुणश्रेणीआयाम ये दो पद अधिक हैं, एवं ७४-७५ द वहां नहीं हैं, तथा ८४ वें पदसे आगे मोहनीयका अन्तिम स्थितिबन्ध अधिक है। पृ. ४१४ पर धवलाकारने जो केवली के योगनिरोधका क्रम बतलाया है वह अन्यत्र पाये जानेवाले क्रमसे कुछ भिन्न है एवं अपनी एक विशेषता रखता है । धवलाकार द्वारा दिये गये क्रममें आठ स्थल हैं और वे इस क्रमसे पाये जाते हैं - (१) बादर कायसे बादर मनका निरोध, ( २ ) बादर कायसे बादर वचनका निरोध, (३) बादर कायसे बादर उच्च्छासका निरोध, ( ४ ) बादर कायसे बादर कायका निरोध, (५) सूक्ष्म कायसे सूक्ष्म मनका निरोध, (६) सूक्ष्म कायसे सूक्ष्म वचनका निरोध, (७) सूक्ष्म कायसे सूक्ष्म उच्छासका निरोध, ( ८ ) सूक्ष्म कायसे सूक्ष्म कायका निरोध | भगवती - आराधनाकी गाथा २११३ - २११४ में जो क्रम पाया जाता है उसमें उक्त क्रमसे तीन बातोंमें भेद पाया जाता है— एक तो वहां बादर मनसे पूर्व बादर वचनका निरोध होना पाया जाता है । दूसरे बादर कायका निरोध बादर कायसे न होकर सूक्ष्म कायसे होना कहा है। और तीसरे वहां बादर और सूक्ष्म उच्छ्रासों का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे वहां स्थल छह ही पाये जाते हैं । ज्ञानार्णव (प्रकरण ४२ ) में भी भगवती आराधना के अनुसार बादर मनसे पूर्व बादर वचनका निरोध कहा गया है । पर यहां स्थल पांच ही पाये जाते हैं जिनमें अन्तिम तीन स्थल इस प्रकार हैं- ( ३ ) सूक्ष्म वचन और सूक्ष्म मनसे बादर कायका निरोध, (४) सूक्ष्म कायसे सूक्ष्म वचनका निरोध, (५) सूक्ष्म कायसे सूक्ष्म मनका निरोध । यहां सूक्ष्म कायके निरोधका कोई उल्लेख ही नहीं है । पंचसंग्रह (१, पृ. ३०-३२ ) में स्थल सात हैं, क्योंकि सूक्ष्म उच्छ्रासका निरोध यहां नहीं बतलाया । पर भगवती आराधना व ज्ञानार्णवके समान बादर मनसे पूर्व बादर वचनका निरोध माना है, भगवती आराधना के समान सूक्ष्म कायसे 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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