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________________ (४८) परिशिष्ट पृ. २१८ पर अधःप्रवृत्तकरणके परिणामोंकी तीव्रमंदताका जो अल्पबहुत्व बतलाया गया है वह लब्धिसार टीका तथा कर्मप्रकृतिमें बतलाये गये क्रमसे कुछ भिन्न है। लब्धिसार टीका व कर्मप्रकृतिमें द्वितीय निर्वगणाकांडकके प्रथम समयकी जघन्य विशुद्धिको प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी कहा है, जबकि धवलाकार स्पष्टतः उसे प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी नहीं, किन्तु प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयकी जघन्य विशुद्धिसे अनन्तगुणी बतला रहे हैं । विचार करनेसे धवलाकारका मत ही ठीक ज्ञात होता है, क्योंकि उसके अनुसार ऊपरके भाव नीचेके भावोंसे समान हो सकते हैं । दूसरे मतके अनुसार ऐसा नही हो सकेगा। पृ. २२६ पर लिखा गया विशेषार्थ अशुद्ध है। उसके स्थानपर निम्न विशेषार्थ पढ़िये विशेषार्थ-अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर स्थितिकांडकघात प्रारम्भ होता है। जिन प्रकृतियोंका उदय हो रहा है उनकी तो उदयावलीसे ऊपरकी स्थितियोंसे प्रदेशाग्र लेकर उदयप्राप्त स्थितिमें सबसे अधिक दिया जाता है, और उससे ऊपरके समयोंमें उदयावलाके अन्त तक उत्तरोत्तर विशेष हीन दिया जाता है । एक वारमें खंडित किये जानेवाले प्रदेशाग्रका प्रमाण अपकर्षण भागहार अर्थात् पल्योपमके असंख्यात भागसे भाजित एक खंडका भी असंख्यातलोकभाजित एक भाग है । और उदयावलीमें जो उत्तरोत्तर विशेष हीन द्रव्य दिया जाता है उस विशेषका प्रमाण दो गुणहानिका प्रतिभागी है। इस प्रकार उदयावलीमें तो केवल उदयप्राप्त प्रकृतियोंके स्थितिखंडोंका ही निक्षेप किया जा सकता है । किन्तु उससे ऊपर उदयप्राप्त व अनुदयप्राप्त दोनों प्रकारके प्रकृतियोंके स्थितिखंड निक्षिप्त किये जाते हैं। उदयावलीसे ऊपर गुणश्रेणी रहती है जिसमें असंख्यात समयप्रबद्धसे लेकर उत्तरोत्तर असंख्यातगुणित क्रमसे प्रदेशाग्र दिये जाते हैं । गुणश्रेणीसे ऊपर एकदम पहली स्थितिमें असंख्यातगुणा हीन और फिर उत्तरोत्तर विशेष हीन द्रव्य दिया जाता है, जब तक कि जहांसे द्रव्य उत्कीर्ण किया गया है वह स्थिति आवलिमात्र दूर न रह जाय । किन्तु उदयावलीसे ठीक ऊपर और गुणश्रेणीसे ठीक नीचे असंख्यात लोकोंसे भाजित एक खंडप्रमाण स्थितियोंमें जो निक्षेप होता है उसमें कुछ विशेषता है। और वह यह कि इस स्थितिके दो भाग किये जाते हैं। उदयावलीसे ठीक ऊपर आवलीके ३ भागसे एक समय हीन प्रमाण स्थितियां तो अतिस्थापना कहलाती हैं जिसमें खंडित द्रव्य दिया ही नहीं जाता । और उससे ऊपर आवलीके ३ भागसे एक समय अधिक प्रमाण स्थितियां निक्षेपके योग्य होती हैं जिनमें पूर्वोक्त विशेष हीन क्रमसे द्रव्य दिया जाता है। यहां एक और विशेषता यह है कि जब इससे ऊपरकी स्थितियोंमें प्रदेशाग्र दिया जाता है तब निक्षेपका प्रमाण तो वहीं रहता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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