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छक्खंडागमे जीवाणं [१, ९-९, २३५. आणदादि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २३५॥
एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ २३६ ॥ सुगममेदं । मणुस्सेसु उववण्णल्लया मणुस्सा केइं सव्वे उप्पाएंति.॥२३७॥ कुदो ? विरोहाभावादो । सेस सुगमं ।
अणुदिस जाव अवराइदविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीयो आगच्छंति ? ॥२३८॥
एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ २३९ ॥
मणुसेसु उववण्णल्लया मणुस्सा तेसिमाभिणिबोहियणाणं सुदणाणं णियमा अत्थि, ओहिणाणं सिया अत्थि, सिया पत्थि । केइं
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आनत आदिसे लगाकर नव ग्रैवेयकविमानवासी देव देवपर्यायोंसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३५ ॥
उपर्युक्त आनतादि नव ग्रैवेयकविमानवासी देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३६ ॥
यह सूत्र सुगम है।
आनतादि नव ग्रैवेयकविमानवासी उपर्युक्त देव च्युत होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्य कोई सर्व गुण उत्पन्न करते हैं ॥ २३७ ॥
क्योंकि, उनके सर्व गुण उत्पन्न करनेमें कोई विरोध नहीं है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
____ अनुदिशसे लेकर अपराजित विमानवासी देव देवपर्यायोंसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३८ ॥
अनुदिशादि उपर्युक्त विमानवासी देव च्युत होकर केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३९॥
अनुदिशादि विमानोंके देव च्युत होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्योंके आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान नियमसे होता है। अवधिज्ञान होता भी है और
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