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________________ १९८] छक्खंडागमे जीवाणं [१, ९-९, २३५. आणदादि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २३५॥ एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ २३६ ॥ सुगममेदं । मणुस्सेसु उववण्णल्लया मणुस्सा केइं सव्वे उप्पाएंति.॥२३७॥ कुदो ? विरोहाभावादो । सेस सुगमं । अणुदिस जाव अवराइदविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीयो आगच्छंति ? ॥२३८॥ एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ २३९ ॥ मणुसेसु उववण्णल्लया मणुस्सा तेसिमाभिणिबोहियणाणं सुदणाणं णियमा अत्थि, ओहिणाणं सिया अत्थि, सिया पत्थि । केइं ........................................... आनत आदिसे लगाकर नव ग्रैवेयकविमानवासी देव देवपर्यायोंसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३५ ॥ उपर्युक्त आनतादि नव ग्रैवेयकविमानवासी देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३६ ॥ यह सूत्र सुगम है। आनतादि नव ग्रैवेयकविमानवासी उपर्युक्त देव च्युत होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्य कोई सर्व गुण उत्पन्न करते हैं ॥ २३७ ॥ क्योंकि, उनके सर्व गुण उत्पन्न करनेमें कोई विरोध नहीं है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। ____ अनुदिशसे लेकर अपराजित विमानवासी देव देवपर्यायोंसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३८ ॥ अनुदिशादि उपर्युक्त विमानवासी देव च्युत होकर केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३९॥ अनुदिशादि विमानोंके देव च्युत होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्योंके आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान नियमसे होता है। अवधिज्ञान होता भी है और Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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