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छक्खंडागमै जीवट्ठाणं १, ९-९, २०१. गम्भोवक्कंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ २०१॥
पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥ २०२ ॥
सव्वमेदं सुगमं ।
अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइया णिरयादो णेरड्या उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २०३ ॥
एक्कं हि चेव तिरिक्खगदिमागच्छंति त्ति ॥२०४॥ पुणरुत्तत्तादो णेदं सुत्तं वत्तव्वं ? ण एस दोसो, जडमइसिस्साणुग्गहहेदुत्तादो ।
तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा छण्णो उप्पाएंतिआभिणिबोहियणाणं णो उप्पाएंति, सुदणाणं णो उप्पाएंति, ओहिणाणं
गर्भोपक्रान्तिक मनुष्योंमें आनेवाले उपयुक्त देव पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपप्तिकोंमें नहीं आते ॥२०१॥
गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ २०२॥
ये सब सूत्र सुगम हैं ।
नीचे सातवीं पृथिवीके नारकी नरकसे निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥२०३॥
सातवीं पृथिवीसे निकले हुए नारकी जीव केवल एक तिर्यंचगतिमें ही आते हैं ॥२०४॥
शंका-(सातवीं पृथिवीसे निकलनेवाले नारकी जीवोंकी गतिका निर्देश ९४ आदि सूत्रों में कर आये हैं, अतएव) पुनरुक्त होनेसे प्रस्तुत सूत्र नहीं कहना चाहिये ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, इस पुनरुक्तिका हेतु जड़मति शिष्योंका अनुग्रह करना है।
तियचोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच इन छहकी उत्पत्ति नहीं करतेआभिनिवोधिक ज्ञानको उत्पन्न नहीं करते, श्रुतज्ञानको उत्पन्न नहीं करते, अवधि
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