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________________ १, ९-९, २००.] चूलियाए गदियागदियाए देवाणं गदीओ [४८३ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, गो असंखेज्जवासाउएसु ॥ १९६ ॥ सबमेदं सुगमं । आणद जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवा सम्मामिच्छाइट्ठी सम्मामिच्छत्तगुणेण देवा देवहि णो चयंति ॥ १९७ ॥ अणुदिस जाव सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा असंजदसम्माइट्ठी देवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ १९८ ॥ __ एकं हि मणुसगदिमागच्छंति ॥ १९९ ॥ एकं हि मणुसगदिमागच्छंति, सुक्कलेस्सियत्तादो सम्माइद्वित्तादो वा। मणुसेसु आगच्छंता गम्भोवक्कंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ २०० ॥ गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ १९६॥ ये सब सूत्र सुगम हैं। आनतसे लगाकर नव ग्रेवेयक तकके विमानवासी सभ्यग्मिथ्यादृष्टि देव सभ्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित देवपर्यायोंसे च्युत नहीं होते ॥ १९७ ॥ __ अनुदिशसे लगाकर सर्वार्थसिद्धि तकके विमानवासी असंयतसम्यग्दृष्टि देव देवपर्यायोंसे च्युत होकर कितनी गतियों में आते हैं ? ॥१९८॥ - उपर्युक्त देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ १९९ ॥ उपर्युक्त देवोंके केवल एक मनुष्यगतिमें ही आनेका कारण उनका शुक्ल लेश्यायुक्त होना अथवा सम्यग्दृष्टि होना ही है। मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव गौपक्रान्तिकोंमें आते हैं, सम्मूच्छिमोंमें नहीं आते ॥ २० ॥ ............ देवगदीदो चत्ता कम्मक्खेतन्मि सणिज्जते । गमभो जाते ण भोगभूमीण ण-तिरिए ॥ ति. प. ८,६८१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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