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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, १९२. एदं पि सुगमं ।
आणदादि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी देवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ १९२॥
सुगममेदं । एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ १९३ ॥ कुदो ? सुक्कलेस्सियाणं तेसिं मणुसाउएण विणा अण्णाउआणं बंधाभावा ।
मणुसेसु आगच्छंता गब्भोवक्कंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १९४ ॥
गम्भोवक्कंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ १९५॥
यह सूत्र भी सुगम है।
आनतसे लगाकर नव ग्रैवेयकविमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव देवपर्यायोंसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ १९२ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ १९३॥
क्योंकि, शुक्ललेझ्यावाले उपर्युक्त देवोंके मनुष्यायुको छोड़ अन्य आयुओंके बन्धका अभाव है।
मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव गर्भोपक्रान्तिकोंमें आते हैं, सम्मूछिमोंमें नहीं आते ॥ १९४ ॥
गर्भोपक्रान्तिक मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १९५॥
१ ततो उवरिमदेवा सव्वा सुक्काभिधाणलेस्साए। उप्पज्जति मणुरसे णत्थि तिरिक्खेसु उववादो। ति. प. ८, ६८०. ततः परं तु ये देवास्ते सर्वेऽनन्तरे भवे । उत्पद्यन्ते मनुष्येषु न हि तिर्यक्षु जातुचित् ।। तत्त्वार्थसार २, १७०.
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