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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, १८२. गम्भोवक्कंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ १८२॥
पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥ १८३ ॥ - सव्वमेदं सुगमं ।
देवा सम्मामिच्छाइट्ठी सम्मामिच्छत्तगुणेण देवा देवेहिं णो उव्वटुंति, णो चयंति ॥ १८४ ॥
सुगममेदं ।
देवा सम्माइट्ठी देवा देवेहि उव्वट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ १८५॥
एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ १८६॥ कुदो ? देवसम्माइट्ठीणं मणुसाउअं मोत्तूण अण्णाउआणं बंधा मावादो ।
. गर्भापक्रान्तिक मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १८२ ।।
पर्याप्तक मनुष्योंमें आनेवाले उपर्युक्त देव संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ १८३ ॥
ये सब सूत्र सुगम हैं।
देव सम्यग्मिथ्यादृष्टि सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित देवपर्यायोंसे न उद्वर्तित होते हैं और न च्युत होते हैं ॥ १८४॥ ___ यह सूत्र सुगम है।
देव सम्यग्दृष्टि देव देवपर्यायोंसे उद्वर्तित व च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ १८५ ॥
सम्यग्दृष्टि देव मरण कर केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥१८६ ॥ क्योंकि, सम्यग्दृष्टि देवोंके मनुष्यायुको छोड़ अन्य आयुओंके बन्धका अभाव है।
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