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षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. विषय ४२ चारित्रमोहनीयकी क्षपणामें | ५६ क्रोधादिके उदयसे उपस्थित अधःप्रवृत्तकरणकालादिकी
पुरुषवेदी आदि क्षपकोंकी आवश्यकता।
विशेषता। ४३ प्रथमसमयवर्ती अपूर्वकर
५७ क्षीणकषाय क्षपकका निरूणका निरूपण ।
पण । ४४ अपूर्वकरणके द्वितीयादि
५८ सयोगकेवलीके निरूपणमें समयोंमें किये जानेवाले कार्य।
___ दण्ड कपाटादि समुद्घा४५ प्रथमसमयवर्ती अनिवृत्तिक
तोका स्वरूप। रणके आवास।
५९ योगनिरोधकरणमें अपूर्व४६ अनिवृत्तिकरणके द्वितीयादि
स्पर्द्धक और कृष्टियोंके करसमयों में किये जानेवाले कार्य
नेका विधान । एवं ज्ञानावरणादिकांके स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व।
६० उपान्त्य समयमें व्युच्छिन्न
होनेवाली तिहत्तर प्रकृतियां। ४७ स्थितिसत्वका निरूपण । ४८ आठ कषाय व निद्रानिद्रा
६१ अन्त्य समयमें व्युच्छिन्न दिकोंका संक्रमण और मन:
होनेवाली बारह प्रकृतियां । पर्ययज्ञानावरणादिकोंका
गति-आगतिचूलिका बन्धसे देशघातिकरणविधान। ३५५ ४९ चार संज्वलन और नौ नोक- । १ नरकगतिमें प्रथमसम्यक्त्वो
पायोके अन्तरकरणका विधान । ३५७ त्पादनकी सामग्री। ५० नपुंसकवेदके संक्रमणका
२ तिर्यग्गतिमें प्रथमसम्यक्त्वोविधान।
त्पत्तिके योग्य सामग्री। ५१ स्त्रीवेदके संक्रमणका विधान। ३६० ३ मनुष्यगतिमें प्रथमसम्य५२ सात नोकषायोंके संक्रमणका
त्वोत्पत्तिके योग्य सामग्री । निरूपण।
४ देवगतिमें प्रथमसम्यक्त्वोत्प५३ अश्वकरणकालमें अपूर्वस्पर्द्ध
त्तिके योग्य सामग्री। कोंका निरूपण।
३६४ ५ नरकगतिमें प्रवेश और निर्ग५४ कृष्टिकरणकालमें क्रोधादि
मनके गुणस्थानोंका निरूपण । कृष्ट्रियोका निर्माण, अल्पब
६ तिर्यग्गतिमें प्रवेश और निर्गदुत्व और उनमें दीयमान
मनके गुणस्थान । प्रदेशाग्रका निरूपण । ३७४ ७ पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती, ५५ कृष्टिवेदककालमें कृष्टियोंका
मनुष्यिनी, और भवनवासी बंध, उदय, अपूर्वकृष्टियोंका
आदि देवोंके प्रवेश व निर्गनिर्माण, प्रदेशाग्रका संक्रमण
मनके गुणस्थान। और सूक्ष्मकृष्टियोंके निर्माणा- । ८ मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और दिका निरूपण ।
___ सौधर्मादि नववेयक विमा
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