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________________ पृष्ठ नं. ४०७ ४१२ ३५३ ४१७ (३८) षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. विषय ४२ चारित्रमोहनीयकी क्षपणामें | ५६ क्रोधादिके उदयसे उपस्थित अधःप्रवृत्तकरणकालादिकी पुरुषवेदी आदि क्षपकोंकी आवश्यकता। विशेषता। ४३ प्रथमसमयवर्ती अपूर्वकर ५७ क्षीणकषाय क्षपकका निरूणका निरूपण । पण । ४४ अपूर्वकरणके द्वितीयादि ५८ सयोगकेवलीके निरूपणमें समयोंमें किये जानेवाले कार्य। ___ दण्ड कपाटादि समुद्घा४५ प्रथमसमयवर्ती अनिवृत्तिक तोका स्वरूप। रणके आवास। ५९ योगनिरोधकरणमें अपूर्व४६ अनिवृत्तिकरणके द्वितीयादि स्पर्द्धक और कृष्टियोंके करसमयों में किये जानेवाले कार्य नेका विधान । एवं ज्ञानावरणादिकांके स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व। ६० उपान्त्य समयमें व्युच्छिन्न होनेवाली तिहत्तर प्रकृतियां। ४७ स्थितिसत्वका निरूपण । ४८ आठ कषाय व निद्रानिद्रा ६१ अन्त्य समयमें व्युच्छिन्न दिकोंका संक्रमण और मन: होनेवाली बारह प्रकृतियां । पर्ययज्ञानावरणादिकोंका गति-आगतिचूलिका बन्धसे देशघातिकरणविधान। ३५५ ४९ चार संज्वलन और नौ नोक- । १ नरकगतिमें प्रथमसम्यक्त्वो पायोके अन्तरकरणका विधान । ३५७ त्पादनकी सामग्री। ५० नपुंसकवेदके संक्रमणका २ तिर्यग्गतिमें प्रथमसम्यक्त्वोविधान। त्पत्तिके योग्य सामग्री। ५१ स्त्रीवेदके संक्रमणका विधान। ३६० ३ मनुष्यगतिमें प्रथमसम्य५२ सात नोकषायोंके संक्रमणका त्वोत्पत्तिके योग्य सामग्री । निरूपण। ४ देवगतिमें प्रथमसम्यक्त्वोत्प५३ अश्वकरणकालमें अपूर्वस्पर्द्ध त्तिके योग्य सामग्री। कोंका निरूपण। ३६४ ५ नरकगतिमें प्रवेश और निर्ग५४ कृष्टिकरणकालमें क्रोधादि मनके गुणस्थानोंका निरूपण । कृष्ट्रियोका निर्माण, अल्पब ६ तिर्यग्गतिमें प्रवेश और निर्गदुत्व और उनमें दीयमान मनके गुणस्थान । प्रदेशाग्रका निरूपण । ३७४ ७ पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती, ५५ कृष्टिवेदककालमें कृष्टियोंका मनुष्यिनी, और भवनवासी बंध, उदय, अपूर्वकृष्टियोंका आदि देवोंके प्रवेश व निर्गनिर्माण, प्रदेशाग्रका संक्रमण मनके गुणस्थान। और सूक्ष्मकृष्टियोंके निर्माणा- । ८ मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और दिका निरूपण । ___ सौधर्मादि नववेयक विमा ४१८ ४२४ ४२८ ३६१ ४३७ ४४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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