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________________ १, ९-९, १७३.] चूलियाए गदियागदियाए देवाणं गदीओ [ ४७७ मणुसा सम्मामिच्छाइट्ठी असंखेजवासाउआ सम्मामिच्छत्तगुणेण मणुसा मणुसेहि णो कालं करेंति १६९ ॥ मणुसा सम्माइट्टी असंखेज्जवासाउआ मणुसा मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १७०॥ एक्कं हि चेव देवगदिं गच्छंति ॥ १७१ ॥ देवेसु गच्छंता सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवेसु गच्छंति॥१७२॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । देवा मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी देवा देवेहि उवट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ १७३॥ सुगममेदं । मनुष्य सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्य सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित मनुष्यपर्यायोंसे मरण नहीं करते ॥ १६९ ॥ मनुष्य सम्यग्दृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्यपर्यायोंसे मरण कर कितनी गतियों में जाते हैं ? ॥ १७० ॥ उपर्युक्त मनुष्य मरण कर एकमात्र देवगतिको जाते हैं ।। १७१॥ देवोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य सौधर्म और ईशान कल्पवासी देवोंमें जाते हैं ॥ १७२॥ ये सूत्र सुगम है। देव मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देव देवपर्यायोंसे उद्वर्तित व च्युत होकर कितनी गतियों में आते हैं ? ॥ १७३ ॥ यह सूत्र सुगम है। विशेषार्थ-सूत्रकार भूतबलि आचार्यने भिन्न भिन्न गतियोंसे छूटनेके अर्थमें संभवतः गतियोंकी हीनता व उत्तमताके अनुसार भिन्न भिन्न शब्दोंका प्रयोग किया है। १ ते संखातीदाऊ जायते केइ जाव ईसाणं । ति. प. ४, २९४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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