________________
१, ९-९, १६३.] चूलियाए गदियागदियाए मणुस्साणं गदीओ [ ४७३
देवेसु गच्छंता भवणवासियप्पहुडि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु गच्छंति ॥ १६१ ॥
एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । कथं मणुससासणसम्माइट्ठीणं . सम्मत्त-संजमरहियाणं णवगेवज्जेसु उप्पत्ती ? ण एस दोसो, दवसंजमस्स वि तप्फलत्तुवलंभादो।
मणुसा सम्मामिच्छाइट्ठी संखेज्जवासाउआ सम्मामिच्छत्तगुणेण मणुसा मणुसेहि णो कालं करेंति ॥ १६२ ॥
कुदो ? एदस्स सव्वाउआणं बंधाभावादो ।
मणुससम्माइट्ठी संखेज्जवासाउआ मणुस्सा मणुस्सेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १६३ ॥
सुगममेदं।
देवोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य भवनवासी देवोंसे लगाकर नौ ग्रैवेयकविमानवासी देवों तक जाते हैं ॥ १६१ ॥
ये सूत्र सुगम हैं।
शंका-सम्यक्त्व और संयमसे रहित सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंकी नौ ग्रैवेयकोंमें उत्पत्ति किस प्रकार होती है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं, क्योंकि द्रव्यसंयमके भी नौ ग्रैवेयकोंमें उत्पन्न होने रूप फलकी प्राप्ति पाई जाती है।
संख्यात वर्षकी आयुवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित मनुष्य होते हुए मनुष्यपर्यायोंसे मरण नहीं करते ॥ १६२॥
क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानमें सर्व आयुओंके बन्धका अभाव है।
मनुष्य सम्यग्दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क मनुष्य मनुष्यपर्यायोंसे मरण कर कितनी गतियों में जाते हैं ? ॥ १६३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
१ मनुष्याः संख्येयवर्षायुषः मिथ्यादर्शनाः सासादनसम्यग्दर्शनाश्च भवनवासिप्रभृतिषूपरिमोत्रेयकान्तेषु उपपादमास्कंदति । त. रा. ४, २१, धृत्वा निग्रंथालिंगं ये प्रकृष्टं कुर्वते तपः। अन्त्यमेवेयकं यावदभव्याः खलु यान्ति ते ॥ तत्त्वार्थसार २, १६७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org