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________________ १, ९-९, १५५.] चूलियाए गदियागदियाए मणुस्साणं गदीओ [४७१ जदि एइंदिएसु सासणसम्माइट्ठी उप्पज्जंति तो एइंदिएसु दोहि गुणट्ठाणेहि होदधमिदि । होदु चे ण, एइंदियसासणदव्वस्स दव्याणिओगद्दारे पमाणपरूवणाभावा ? एत्थ परिहारो वुच्चदे । तं जहा- सासणसम्माइट्ठी एइंदिएसु उप्पज्जमाणा जेण अप्पणो आउअस्स चरिमसमए सासणपरिणामेण सहिया होदूण तदो उवरिमसमए मिच्छत्तं पडिवज्जति तेण एइंदिएसु ण दोणि गुणट्ठाणाणि, मिच्छाइटिगुणट्ठाणमेकं चेव । एइंदिएसु गच्छंता बादरपुढवी-बादरआउ-बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तएसु गच्छंति, णो अपज्जत्तेसु ॥ १५३ ॥ पंचिंदिएसु गच्छंता सण्णीसु गच्छंति, णो असण्णीसु ॥१५४॥ सण्णीसु गच्छंता गब्भोवक्कंतिएसु गच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १५५॥ शंका-यदि एकेन्द्रियों में सासादनसम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं, तो एकेन्द्रियोंमें दो गुणस्थान होना चाहिये ? यदि कहा जाय कि एकेन्द्रियोंमें दो ही गुणस्थान होने दो सो भी नहीं बन सकता, क्योंकि द्रव्यानुयोगद्वारमें एकेन्द्रिय सासादनगुणस्थानवी जीवोंके द्रव्यका प्रमाण नहीं बतलाया गया ? समाधान-यहां उपर्युक्त शंकाका परिहार कहा जाता है। वह इस प्रकार हैचूंकि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीव अपनी आयुके अन्तिम समयमें सासादनपरिणाम सहित होकर उससे ऊपरके समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त हो जाते हैं, इसलिये एकेन्द्रियोंमें दो गुणस्थान नहीं होते, केवल एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है। एकेन्द्रियों में जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तकोंमें जाते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं ॥१५३॥ पंचेन्द्रियोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य संज्ञियोंमें जाते हैं, असंज्ञियोंमें नहीं ॥ १५४॥ संज्ञियोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य गर्भोपक्रान्तिकोंमें जाते हैं, सम्मूछिमोंमें नहीं ॥ १५५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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