________________
४७०]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, १४९. कुदो ? मणुस्सअपज्जत्ताणं तिरिक्ख-मणुस्साउअं मोत्तूण अण्णेसिं आउआणं बंधाभावा ।
तिरिक्ख-मणुसेसु गच्छंता सव्वतिरिक्ख-मणुसेसु गच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु गच्छंति ॥ १४९ ॥
कुदो ? एदेसि दाण-दाणाणुमोदाणमभावादो ।
मणुस्ससासणसम्माइट्ठी संखेज्जवासाउआ मणुसा मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १५० ॥
सुगममेदं ।
तिण्णि गदीओ गच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदिं देवगदिं चेदि ॥ १५१ ॥
सुगममेदं ।
तिरिक्खेसु गच्छंता एइंदिय-पंचिंदिएसु गच्छंति, णो विगंलिंदिएसु गच्छंति ॥१५२॥
क्योंकि, अपर्याप्तक मनुष्योंके तिर्यंच और मनुष्य, इन दो आयुओंको छोड़कर अन्य आयुओंके बन्धका अभाव है।
तियंच और मनुष्योंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य सभी तिर्यंच और सभी मनुष्यों में जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंच और मनुष्योंमें नहीं जाते ॥ १४९॥
क्योंकि, अपर्याप्तक मनुष्योंके दान और दानानुमोदन इन दोनों कारणोंका अभाव है।
मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क मनुष्य मनुष्यपर्यायोंसे मरण करके कितनी गतियोंको जाते हैं ? ॥१५॥
यह सूत्र सुगम है।
उपर्युक्त मनुष्य तीन गतियोंमें जाते हैं- तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति ॥ १५१॥
यह सूत्र सुगम है।
तियंचोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवोंमें जाते हैं, विकलेन्द्रिय जीवों में नहीं जाते ॥ १५२ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org