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________________ १, ९-९, १४८.] चूलियार गदियागदियाए मणुस्साणं गदीओ [४६९ एदं पि सुगमं । णिरएसु गच्छंता सव्वणिरएसु गच्छंति ॥ १४३॥ तिरिक्खेसु गच्छंता सव्वतिरिक्खेसु गच्छंति ॥ १४४ ॥ मणुसेसु गच्छंता सव्वमणुस्सेसु गच्छंति ॥ १४५॥ देवेसु गच्छंता भवणवासियप्पहुडि जाव गवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु गच्छंति ॥ १४६ ॥ एदाणि ( सुत्ताणि ) सुगमाणि । मणुसा अपज्जत्ता मणुसा मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १४७ ॥ सुगममेदं । दुवे गदीओ गच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदिं चैव ॥ १४८॥ । यह सूत्र भी सुगम है। नरकोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य सभी नरकोंमें जाते हैं ॥ १४३ ॥ तिर्यंचोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य सभी तिर्यंचोंमें जाते हैं ॥१४४ ॥ मनुष्यों में जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य सभी मनुष्यों में जाते हैं ॥१४५॥ देवोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य भवनवासी देवोंसे लगाकर नौ ग्रैवेयकविमानवासी देवों तकमें जाते हैं ॥१४६॥ ये सूत्र सुगम हैं। मनुष्य अपर्याप्तक मनुष्य मनुष्यपर्यायोंसे मरण करके कितनी गतियोंमें जाते हैं १ ॥१४७॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त मनुष्य दो गतियोंमें जाते हैं- तिर्यंचगति और मनुष्यगति ॥१४८॥ तिरियाउयं कि तिरिएम उवव०, मणुस्साउयं कि० मणुस्से० उव०, देवाउय० कि० देवलोएसु उववज्जइ ? गोयमा, एगंतबाले णं मणुस्से नेरइयाउयं पि पकरेइ, तिरि०, मणु, देवाउय पि पकरेइ । व्याख्याप्रज्ञप्ति १, ८, ६४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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