________________
१६८]
छक्खंडागमे जीवाणं [१, ९-९, १३९. एकं हि चेव देवगदिं गच्छंति ॥ १३९ ॥ एदं पि सुगमं । देवेसु गच्छंता सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवेसु गच्छंति ॥१४॥ तेसिं तदा उवरि तत्तो हेट्ठा वा उप्पज्जणपरिणामाभावा ।
मणुसा मणुसपज्जत्ता मिच्छाइट्टी संखेज्जवासाउआ मणुसा मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १४१ ॥
सुगममेदं । . चत्तारि गदीओ गच्छंति णिरयगई तिरिक्खगई मणुसगई देवगई चेदि ॥ १४२ ॥
........................
असंख्यातवर्षायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच मरकर एकमात्र देवगतिको ही जाते हैं ॥ १३९ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
देवोंमें जानेवाले असंख्यातवर्षायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच सौधर्म-ईशान कल्पवासी देवोंमें जाते हैं ॥१४॥
__ क्योंकि, उन जीवोंमें सौधर्म ईशान स्वर्गसे ऊपर या नीचे उत्पन्न होने योग्य परिणामोंका अभाव पाया जाता है।
मनुष्य मनुष्यपर्याप्त मिथ्यादृष्टि संख्यातवर्षायुष्क मनुष्य मनुष्यपर्यायोंसे मरणकर कितनी गतियोंको जाते हैं ? ॥ १४१॥
यह सूत्र सुगम है।
उपर्युक्त मनुष्य चारों गतियोंमें जाते हैं -- नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति ॥ १४२॥
१ संखातीदाओ जाव ईसाणं । ति. प. ५, ३१३. तापसावोत्कृष्टाः, त एवं सम्यग्दृष्टयः सौधर्मशानयोर्जन्मानुभवन्ति । त. रा. ४, २१.
२ संखेज्जाउवमाणा मणुवा गर तिरिय-देव-णिरएमुं । सब्बेसुं जायंति सिद्धगदीओ वि पावति ॥ ति.प. ४, २९४४. मणुवा जति चउम्गदिपरियंतं सिद्धिठाणं च । गो. क. ५४१. एगंत बाले भंते, मणूसे किं नेरइयाउयं पकरेइ तिरिक्खाउयं पकरेइ मणुसाउयं पकरेइ देवाउयं पकरेइ ? नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org