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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
कुदो ? तेसिं दाण- दाणाणुमोदाणमभावादो ।
ते काइया वाउकाइया बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥११५॥ ममेदं ।
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एकं चैव तिरिक्खगदिं गच्छति ॥ ११६ ॥
कुदो ! सव्वते वाउकाइयाणं संकिलिट्ठाणं सेस गइजोग्गपरिणामाभावा । तिरिक्खेसु गच्छंता सव्वतिरिक्खेसु गच्छंति, णो असंखेज्जवस्साउसु गच्छति ॥ ११७ ॥
सुगममेदं ।
[ १, ९–९, ११५.
तिरिक्खसासणसम्माइट्टी संखेज्जवस्साउआ तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ ११८ ॥
क्योंकि, उक्त तिर्यच जीवोंके दान और दानानुमोदनका अभाव पाया जाता है । अग्निकायिक और वायुकायिक बादर व सूक्ष्म पर्याप्तक व अपर्याप्तक तिर्यंच तिर्यच पर्यायोंसे मरण करके कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ।। ११५ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त तिर्यच एकमात्र तिर्यंचगतिमें ही जाते हैं ॥ ११६ ॥
क्योंकि, समस्त अग्निकायिक और वायुकायिक संक्लिष्ट जीवोंके शेष गतियों में जाने योग्य परिणामोंका अभाव पाया जाता है ।
तिर्यंचों में जानेवाले उपर्युक्त तिर्यच जीव सभी तिर्यचोंमें जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंचों में नहीं जाते ॥ ११७ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
तिर्यच सासादनसम्यग्दृष्टि संख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यच तिर्यचपर्यायोंसे मरण करके कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ॥ ११८ ॥
१ तेउदुगं तेरिच्छे सेसेग अपुण्णवियलगा य तहा । तित्थूणणरे वि तहाsसण्णी घम्मे य देवदुगे ॥ सणी वि तहा सेसे पिरये भोगे वि अच्चुदंते वि । गो. क. ५४० - ५४१. ण लहंति तेउवाऊ मणुवाउमणंतरे नम्मे ॥ ति. प. ५, ३१०. सर्वेऽपि तैनसा जीवाः सर्वे चानिलकायिकाः । मनुजेषु न जायन्ते ध्रुवं जन्मन्यनन्तरे ॥ तत्त्वार्थसार २, १५७.
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