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________________ १, ९–९, ११४. ] चूलियाए गदियागदियाए तिरिक्खाणं गदीओ [ ४५७ पंचिंदियतिरिक्खसण्णी असण्णी अपज्जत्ता पुढवीकाइया आउकाइया वा वणप्फइकाइया णिगोदजीवा बादरा सुहमा बादरवणफदिकाइया पत्तेयसरीरा पज्जत्ता अपज्जत्ता बीइंदिय-तीइंदिय- चउरिंदियपज्जत्तापज्जत्ता तिरिक्खा तिरिक्खेहिं कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ ११२ ॥ सुगममेदं पुच्छासुतं । दुवे गदीओ गच्छंति तिरिक्खगदिं मणुसगदिं चेदि ॥ ११३ ॥ कुदो देव- णिरयगदिगमणपरिणामाभावा । तिरिक्ख- मणुस्सेसु गच्छंता सव्वतिरिक्ख- मणुस्सेसु गच्छंति, असंखेज्जवस्साउएस गच्छति ॥ ११४ ॥ पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञी व असंज्ञी अपर्याप्त, पृथिवीकायिक या जलकायिक या वनस्पतिकायिक, निगोद जीव बादर या सूक्ष्म, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त या अपर्याप्त, और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्त तिर्यंच तिर्यचपर्यायोंसे मरण करके कितनी गतियों में जाते हैं ? ॥ ११२ ॥ यह पृच्छासूत्र सुगम I उपर्युक्त तिर्यच जीव दो गतियोंमें जाते हैं- तिर्यंचगति और मनुष्यगति ॥ ११३ ॥ 7 क्योंकि, उन तिर्यच जीवोंके देव और नरक गतिमें जाने योग्य परिणामोंका अभाव है । तिर्यच और मनुष्यों में जानेवाले उपर्युक्त तिर्यंच सभी तिर्यंच और मनुष्यों में जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंचों और मनुष्योंमें नहीं जाते ॥ ११४ ॥ १ पुट विप्पहृदि वणफदिअंतं वियला य कम्मणरतिरिए । ति प. ५, ३१०. त्रयाणां खलु कायानां विकलानामसंज्ञिनाम् । मानवानां तिरश्चां वाऽविरुद्धः संक्रमो मिथः ॥ तत्त्वार्थसार २, १५४. २ बत्तीसभेदतिरिया ण होंति कहयाइ भोगसुरणिरए । सेढिघणमेत्तलोए सव्वे पक्खेसु जायंति ॥ ति. प. ५, ३११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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