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१, ९–९, ११४. ] चूलियाए गदियागदियाए तिरिक्खाणं गदीओ
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पंचिंदियतिरिक्खसण्णी असण्णी अपज्जत्ता पुढवीकाइया आउकाइया वा वणप्फइकाइया णिगोदजीवा बादरा सुहमा बादरवणफदिकाइया पत्तेयसरीरा पज्जत्ता अपज्जत्ता बीइंदिय-तीइंदिय- चउरिंदियपज्जत्तापज्जत्ता तिरिक्खा तिरिक्खेहिं कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ ११२ ॥
सुगममेदं पुच्छासुतं ।
दुवे गदीओ गच्छंति तिरिक्खगदिं मणुसगदिं चेदि ॥ ११३ ॥ कुदो देव- णिरयगदिगमणपरिणामाभावा ।
तिरिक्ख- मणुस्सेसु गच्छंता सव्वतिरिक्ख- मणुस्सेसु गच्छंति, असंखेज्जवस्साउएस गच्छति ॥ ११४ ॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञी व असंज्ञी अपर्याप्त, पृथिवीकायिक या जलकायिक या वनस्पतिकायिक, निगोद जीव बादर या सूक्ष्म, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त या अपर्याप्त, और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्त तिर्यंच तिर्यचपर्यायोंसे मरण करके कितनी गतियों में जाते हैं ? ॥ ११२ ॥
यह पृच्छासूत्र सुगम I
उपर्युक्त तिर्यच जीव दो गतियोंमें जाते हैं- तिर्यंचगति और मनुष्यगति ॥ ११३ ॥
7 क्योंकि, उन तिर्यच जीवोंके देव और नरक गतिमें जाने योग्य परिणामोंका
अभाव है ।
तिर्यच और मनुष्यों में जानेवाले उपर्युक्त तिर्यंच सभी तिर्यंच और मनुष्यों में जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंचों और मनुष्योंमें नहीं जाते ॥ ११४ ॥
१ पुट विप्पहृदि वणफदिअंतं वियला य कम्मणरतिरिए । ति प. ५, ३१०. त्रयाणां खलु कायानां विकलानामसंज्ञिनाम् । मानवानां तिरश्चां वाऽविरुद्धः संक्रमो मिथः ॥ तत्त्वार्थसार २, १५४.
२ बत्तीसभेदतिरिया ण होंति कहयाइ भोगसुरणिरए । सेढिघणमेत्तलोए सव्वे पक्खेसु जायंति ॥ ति. प. ५, ३११.
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