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________________ १, ९-९, ९९. ] चूलियाए गदियागदियाए रइयाणं गदीओ [ ४५३ तिरिक्खेसु आगच्छंता पंचिंदिएस आगच्छेति णो एइंदियविगलिंद ॥ ९५ ॥ पंचिंदिवस आगच्छंता सण्णीसु आगच्छंति, णो असण्णीसु ॥ ९६ ॥ सणीस आगच्छंता गन्भोवकंतिएस आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ ९७ ॥ गन्भोवकंतिसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तसु ॥ ९८ ॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवस्साउएस आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउसु ॥ ९९ ॥ दाणि सुत्ताणि सुगमाणि । तिर्यंचों में आनेवाले सातवीं पृथिवीके नारकी जीव पंचेन्द्रियोंमें ही आते हैं, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में नहीं ।। ९५ ॥ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में आनेवाले सातवीं पृथिवीके नारकी जीव संज्ञियों में आते हैं, असंज्ञियों में नहीं ॥ ९६ ॥ पंचेन्द्रिय संज्ञी तिर्यचों में आनेवाले सातवीं पृथिवीके नारकी जीव गर्भोपक्रान्तिकों में आते हैं, सम्मूच्छिमों में नहीं ॥ ९७ ॥ पंचेन्द्रिय संज्ञी गर्भोपकान्तिक तिर्यंचों में आनेवाले सातवीं पृथिवीके नारकी जीव पर्याप्तकों में आते हैं, अपर्याप्तकों में नहीं ॥ ९८ ॥ पंचेन्द्रिय संज्ञी गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त तिर्यंचों में आनेवाले सातवीं पृथिवीके नारकी जीव संख्यात वर्षकी आयुवालों में आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुवालों में नहीं ॥ ९९ ॥ सूत्र सुगम हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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