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________________ ४५२ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, ९-९, ९१. पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥ ९१ ॥ एदाणि सुत्ताणि सुगनाणि । एवं छसु उवरिमासु पुढवीसु णेरइया ॥ ९२ ॥ एदं पि सुगमं । अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइया मिच्छाइट्टी णिरयादो उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ ९३ ॥ सुगममेदं पुच्छासुतं । एकं तिरिक्खगदिं चेव आगच्छंति ॥ ९४॥ कुदो ? तेसिं तिरिक्खाउअं मोत्तूग सेसाउआणं बंधाभावादो । गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्तक मनुष्योंमें आनेवाले सम्यग्दृष्टि नारकी जीव संख्यात वर्षकी आयुवालोंमें आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें नहीं।। ९१ ॥ ये सूत्र सुगम हैं। इस प्रकार ऊपरकी छह पृथिवियोंके नारकी जीव निर्गमन करते हैं ॥ ९२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। नीचे सातवीं पृथिवीमेंके मिथ्यादृष्टि नारकी जीव निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ ९३॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है। सातवीं पृथिवीसे निकले हुए नारकी जीव केवल एक तिर्यंचतिमें ही आते हैं ॥ ९४॥ पयोंकि, सातवीं पृथिवीके नारकी जीवोंमें तियेचायुको छोड़ शेष तीन आयुओंके बंधका अभाव है। १ सप्तम्यां नारका मिथ्यादृष्टयो नरकेभ्य उद्वांतता एकामेव तिर्यग्गतिमायान्ति । तियश्चायाताः पंचिन्द्रियगर्भजपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुःपू पद्यन्त नेतरपु । त. रा. ३, ६. न लभन्ते मनुष्यत्वं सप्तम्या निर्गताः क्षितः। तिर्यक्त्वे च समुत्पद्य नरकं यान्ति ते पुनः ॥ तत्त्वार्थसार २, १४७. रइयाणं गमणं सण्णीपजतकम्मतिरियणरे । चरिमचऊ तित्थूणे तेरिच्छे चेक सत्तमिया ।। गो. क. ५३८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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