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________________ १, ९–९, ९०. ] चूलियाए गदियागदियाए रइयाणं गदीओ [ ४५१ कुदो ? सहावदो । एदेण अधिगमो वि पडिसिद्धो, उच्चट्टणपडिसेहस्स अधिगम - पडिसेहाविणाभावादो । रइया सम्माइट्ठी णिरयादो उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ ८७ ॥ सुगममेदं पुच्छासुतं । एकं मणुसगदिं चैव आगच्छंति ॥ ८८ ॥ कुदो ? रइयसम्माइट्ठीणं मणुस्साउअं मोत्तून अण्णाउवसंतकम्मियाणं सम्मतेव्वट्टणाभावा । मणुसेसु आगच्छंता गन्भोवक्कंतिएस आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमे ॥ ८९ ॥ गन्भोवक्कंतिएस आगच्छंता पज्जत्तएस आगच्छंति, णो अपज्जत्तसु ॥ ९० ॥ क्योंकि, ऐसा उनका स्वभाव है । इसी सूत्र से नरक में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान सहित आने का भी निषेध कर दिया गया है, क्योंकि उद्वर्तनप्रतिषेधका अधिगम - प्रतिषेधके साथ अविनाभाव संबंध है, अर्थात्, जिस गति से जिस गुणस्थान सहित निकलना नहीं होता, उस गतिमें उस गुणस्थान सहित आना भी नहीं हो सकता । सष्ट नारकी जीव नरकसे निकलकर कितनी गतियों में आते हैं ? ॥ ८७॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है । सम्यग्दृष्टि नारकी जीव नरकसे निकलकर एक मनुष्यगति में ही आते हैं ॥ ८८ ॥ क्योंकि, मनुष्यायुको छोड़कर अन्य आयुकर्मकी सत्ता रखनेवाले नारकी सम्यग्दष्टियों के सम्यक्त्व सहित नरकसे निकलनेका अभाव है । मनुष्यों में आनेवाले सम्यग्दृष्टि नारकी जीव गर्भापक्रान्तिकोंमें आते हैं, सम्मूच्छिमों में नहीं ॥ ८९॥ गर्भोक्रान्तिक मनुष्यों में आनेवाले सम्यग्दृष्टि नारकी जीव पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकों में नहीं ॥ ९० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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