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________________ ४५० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ९-९, ८३. किमट्ठमसंखेज्जवासाउएसु णागच्छंति त्ति ? णेरइएसु दाण-दाणाणुमोदाणमभावादो। मणुस्सेसु आगच्छंता गब्भोवक्कंतिएसु आगन्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ ८३ ॥ गब्भोवक्कंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ ८४ ॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवस्साउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवस्साउएसु ॥ ८५ ॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । णेरइया सम्मामिच्छाइट्ठी सम्मामिच्छत्तगुणेण णिरयादो णो उव्वर्द्दिति ॥८६॥ शंका-नरकसे आनेवाले जीव असंख्यात वर्षकी आयुवाले अर्थात् भोगभूमिके तिर्यंचोंमें क्यों नहीं आते ? | समाधान-नारकी जीवों में दान और दानका अनुमोदन इन दोनों भोगभूमिमें उत्पन्न होने के कारणोंके अभावसे वे जीव असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंचोंमें नहीं उत्पन्न होते। ___ मनुष्योंमें आनेवाले नारकी जीव ग पक्रान्तिकोंमें आते हैं, सम्मूछिमोंमें नहीं ॥ ८३ ॥ __गर्भोपक्रान्तिक मनुष्योंमें आनेवाले नारकी जीव पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं ॥ ८४॥ गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त मनुष्योंमें आनेवाले नारकी जीव संख्यात वर्षकी आयुष्यवालोंमें आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुष्यवालोंमें नहीं ॥ ८५॥ ये सूत्र सुगम हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारकी जीव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित नरकसे नहीं निकलते ॥८६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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