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विषय-सूची
(३५) क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. विषय पृष्ठं नं. उत्कृष्टस्थितिचूलिका
| १३ तिर्यगायु और मनुष्यायुका
उत्कृष्ट स्थितिबन्ध व उसकी १ उत्कृष्टस्थितिके कथनकी
आबाधा। प्रतिक्षा।
१४५
१४ द्वीन्द्रियादि प्रकृतियोंका २ पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्श
__ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध व उनके नावरणीय, असातावेदनीय
आबाधाप्रमाणको बतलाते और पांच अन्तरायोंकी
हुए इच्छित निषेकोंके भागउत्कृष्ट स्थितिका निरूपण ।।
हारके निकालनेका विधान । ३ उपर्युक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट १५ आहारकशरीर, आहारकशआबाधा तथा आबाधा
रीरांगोपांग और तीर्थकर काण्डकोका निरूपण ।
१४८ प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका ४ आबाधासे हीन कर्मस्थिति.
निरूपण।
१७४ _प्रमाण कर्मनिषेकका निरूपण। १५० १६ उक्त तीनों प्रकृतियोंके ५ उत्कृष्ट स्थितिमें प्रदेशरचना
आबाधाकालका प्रमाण । १७७ क्रमको बतलाते हुए गुण
न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान हानि आदिका निरूपण ।
१५२ और
और वज्रनाराचसंहननका ६ सातावेदनीय, स्त्रीवेद,
उत्कृष्ट स्थितिबन्ध व आबाधा। मनुष्यगति और मनुष्यगति
१८ स्वातिसंस्थान और नाराचप्रायोग्यानुपूर्वीकी उत्कृष्ट
संहननका उत्कृष्ट स्थितिस्थिति।
बन्ध व आबाधा। ७ उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट १९ कुञ्जकसंस्थान और अर्धआबाधा। १५९ नाराचसंहननका उत्कृष्ट
१७९ ८ मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति
स्थितिबन्ध व आवाधा। व आबाधाका प्रमाण ।
जघन्यस्थितिचूलिका ९ सोलह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध व उसकी आबाधा। १६१ /
१ जघन्यस्थितिके कहनेकी
प्रतिज्ञा तथा संक्लेश का १० पुरुषवेदादि प्रकृतियोंका
विशुद्धिपर विचार। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध व उसकी
२ पांच ज्ञानावरण, चार दर्शआबाधा।
नावरण, संज्वलनलोभ एवं ११ नपुंसकवेदादि प्रकृतियोंका
पांच अन्तरायोका जघन्य उत्कृष्ट स्थितिबन्ध व उसकी
स्थितिबन्ध व आबाधा। अबाधा।
१६३
३ पांच दर्शनावरण और असा१२ नारकायु व देवायुका उत्कृष्ट
तावेदनीयका जघन्य स्थितिस्थितिबन्ध व उसकी आबाधा। १६६ ।। बन्ध व आवाधा।
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