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________________ (३४) पृष्ठ नं १०४ ६३२ षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय २३ आयुकर्मके भेद व उनका । ६ मोहनीय कर्मके दश लक्षण। ४८ स्थानोंका निरूपण । २४ नामकर्मकी ब्यालीस पिण्ड ७ आयुकर्मके बन्धस्थान । प्रकृतियोंका पृथक् पृथक् ८ नामकर्मके अट्ठाईस प्रकृतिलक्षणनिरूपण। __सम्बन्धी स्थान। २५ गति व जाति नामकर्मीके ९ तिर्यग्गति नामकर्मके पांच भेदोंका निरूपण। स्थान। २६ शरीर नामकर्मके भेदोंका १० मनुष्यगति नामकर्मके तीन निरूपण। स्थान। २७ बन्धनके भेद । ११ देवगति नामकर्मके पांच २८ संघातके भेद । स्थान। १२२ २९ संस्थान नामकर्मके भेद वे १२ गोत्र कर्मके बन्धस्थान । १३१ उनके लक्षण। १३ अन्तरायकी पांच प्रकृति३० अंगोपांग नामकर्मके भेद व योका एक बन्धस्थान। उनके लक्षण । ३१ संहनन नामकर्मके भेद व प्रथममहादण्डकचूलिका उनके लक्षण । १ प्रथमसम्यक्त्वके अभिमुख ३२ वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श हुए जीवके बध्यमान प्रकृतिनामकर्मके भेदोंका निरूपण । योंके कीर्तनकी प्रतिज्ञा। १३३ ३३ आनुपूर्वी आदि नामकर्मके २ प्रथमसम्यक्त्वीके द्वारा भेदोका निरूपण। बध्यमान प्रकृतियोंका निर्देश। १३३ ३४ गोत्र और अन्तराय कर्मके ... ३ सम्यक्त्वाभिमुख हुए मिथ्या दृष्टि जीवके प्रकृतियोंके बन्धभेदोका निरूपण। व्युच्छित्तिक्रमका निरूपण । ___ स्थानसमुत्कीर्तनचूलिका द्वितीयमहादण्डकचूलिका १ स्थानसमुत्कीर्तनकी प्रतिज्ञा। ७९ १ प्रथमसम्यक्त्वाभिमुख देव २ बन्धकस्थानोंके भेद। ८० | और नारकीके बध्यमान प्रक३ शानावरणीयकी पांच प्रकृति तियोंका निरूपण। योंका निर्देश व उनके एक बन्धस्थानका निरूपण।। तृतीयमहादण्डकचूलिका ४ दर्शनावरणीय कर्मके तीन १ प्रथमसम्यक्त्वाभिमुख बन्धस्थानोंका निरूपण । सप्तम पृथिवीके नारकी ५ वेदनीयके एक बन्धस्थानका द्वारा बध्यमान प्रकृतियोंका निरूपण। ८७ | निर्देश। १४२ १३५ १४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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