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पृष्ठ नं.
विषय-सूची
प्रकृतिसमुत्कीर्तनचूलिका क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय १ धवलाकारका मंगलाचरण १४ मति-श्रुतशानोंसे अवधिऔर प्रतिज्ञा।
ज्ञानकी भिन्नता बतला कर २ शंका-समाधानपूर्वक चूलिका
उसकी प्रत्यक्षताका निरूपण। का अवतार व उसके
१५ मनःपर्ययज्ञान व उसके भेद भेदोंका निरूपण ।
तथा अवधि और मनःपर्यय ३ प्रकृतिसमुत्कीर्तनकी प्रतिक्षा ।
ज्ञानोंका वैशिष्टय । ४ प्रकृतिसमुत्कीर्तनके भेदोका १६ केवलज्ञान और केवलज्ञानानिर्देश तथा मूलप्रकृति व
वरणीयका स्वरूप एवं 'उत्तरप्रकृतिका लक्षण।
केवलीके मतिज्ञानादि चार ५ ज्ञानावरणीयका निर्देश तथा
शानोंके अभावका निरूपण । आब्रियमाण और आवारक
। १७ दर्शनावरणीयके नौ भेदोंका का निरूपण।
एवं दर्शन व उसके भेदोंका
- निरूपण | ६ दर्शन व दर्शनावरणीयका लक्षण व दर्शनका ज्ञानसे
१८ दर्शनके स्वरूपमें भिन्न पृथक्त्वप्ररूपण ।
मतोंका दिग्दर्शन और उनका
खण्डन । ७ वेदनीयका निरूपण । ८ मोहनीयका निरूपण ।
१९ सातावेदनीय व असातावेद
नीयका लक्षण, उन दोनोंके ९ आयु नाम, गोत्र व अन्तराय
अभावमें सुख-दुःखाभावरूप कौंका निरूपण ।
आशंकाका समाधान और १० ज्ञानावरणीयके पांच भेदोंका
सातावेदनीयका जीव-पुद्गलनिर्देश।
विपाकित्वनिरूपण । ११ आभिनिबोधिक ज्ञानका २० मोहनीय कर्मके अट्ठाईस स्वरूप व उसके अवग्रहादि
भेदोंका निरूपण, दर्शनमोहभेद-प्रभेदोंका निरूपण ।
नीयका स्वरूप और बन्ध वं १२ श्रुतवान और, श्रुतज्ञानावर
सत्वकी अपेक्षा उसका णीयका लक्षण व श्रुतज्ञानके
वैशिष्ट्य । बीस भेदोंका निरूपण । २१ २१ सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और १३ अवधिज्ञान और अवधिज्ञाना.
। सम्यग्मिथ्यात्वका निरूपण । घरणका लक्षण तथा अवधि
| २२ चारित्रमोहनीयके भेद-प्रमेद , .ज्ञानके तीन भेदोका निर्देश । ___२५ प उनके भिन्न भिन्न लक्षण ।
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