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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
( १, ९-९, ७९.
एइंदिया वियलिंदिया चेत्र, पंचण्हमिंदियाणं संपुण्णत्ताभावादो । तदो विगलिंदियहणमेव पहुपदि, एइंदियग्गहणं ण कायव्यमिदि ९ ण, विगलिंदियग्गहणेण एईदियाणं गहणे कीरमाणे उवरि देवगदिम्हि वीइंदियादीणं पुध पुध पडिसेहो कायव्वो होदि । एवं कीरमाणे गंथबहुत्तं पावेदि । तेण पुध एइंदियणिदेसो को । सेसं सुगमं । पंचिंदिएस आगच्छंता सण्णीसु आगच्छंति, णो असण्णीसु
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कुदो ? सहावदो | ण सहावो परपज्जणिओगजोगो । सण्णीसु आगच्छंता गन्भोवकंतिएस आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ ८० ॥
केण कारणेण सम्मुच्छिमेसु णागच्छंति ? चक्खि दिएण सदो किण्ण घेप्पदि ?
शंका - पांचों इन्द्रियोंकी सम्पूर्णता के अभाव से एकेन्द्रिय जीव विकलेन्द्रिय ही हैं । इसलिये सूत्रमें केवल विकलेन्द्रियका ग्रहण पर्याप्त है, एकेन्द्रियका ग्रहण नहीं करना चाहिये ?
समाधान - नहीं, क्योंकि यदि विकलेन्द्रियके ग्रहणसे एकेन्द्रियका भी ग्रहण किया जाय तो आगे देवगतिके कथनमें द्वीन्द्रियादिकोंका पृथक् पृथक् प्रतिषेध करना आवश्यक हो जायगा । और ऐसा करनेपर ग्रंथका विस्तार बढ़ जाता है । इसलिये सूत्रमें एकेन्द्रियों का पृथक् निर्देश किया गया है ।
शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें आनेवाले नारकी जीव संज्ञियोंमें आते हैं, असंज्ञियों में नहीं ॥ ७९ ॥
क्योंकि, ऐसा उनका स्वभाव है और स्वभाव दूसरोंके द्वारा प्रश्नके विषय नहीं
हुआ करते ।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञियोंमें आनेवाले नारकी जीव गर्भापक्रान्तिकों में आते हैं, सम्मूच्छिमोंमें नहीं ॥ ८० ॥
शंका-नरक से आनेवाले जीव सम्मूच्छिम निर्यचोंमें क्यों नहीं आते ? प्रतिशंका - चक्षुइन्द्रियसे शब्दका ग्रहण क्यों नहीं होता ?
प्रतिशंकाका समाधान - स्वभावसे ही चक्षुइन्द्रिय द्वारा शब्दका ग्रहण
नहीं होता ?
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